How did Kayastha society rise?
कायस्थ समाज का इतिहास आज के समय में कहीं खो सा गया है, आज इस लेख के माध्यम से मैं कायस्थ समाज से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारीयां दूंगी. तो अगर आप भी इस समाज के बारे में जानने के इच्छुक हैं या फिर खुद एक कायस्थ हैं तो इस लेख को पूरा पढ़ें.
कायस्थ शब्द संस्कृत के दो शब्दों काया और अस्थ से बना है, जिसका अर्थ है शरीर और अंदर से. पौराणिक कथाओं की मानें तो कायस्थ समाज का जन्म प्राचीन मध्यकाल में हुआ था. भगवान बृह्मा ने मृत्यु के देवता यमराज की सहायता के लिए चित्रगुप्त जी की रचना की थी. चित्रगुप्त जी को लोगों के कर्मों का लेखा जोखा संभालने का पदभार सौंपा गया था.
चित्रगुप्त जी की दो पत्नीयां थीं; इरावती और नंदिनी जिनसे चित्रगुप्त जी की 12 संतानें हुईं जिनका नाम था; सक्सेना, श्रीवास्तव, अम्बष्ठ, निगम, माथुर, सूरजध्वज, अष्ठाना, वालमिक, कुलश्रेष्ठ, करण और गौड़. पहली बार कायस्थ शब्द की खोज 375 एडी में कुशान साम्राज्य में हुई थी. कायस्थ समाज पौराणिक समय से ही प्रशासनिक कार्यों में शामिल रहा है. कई राज दरबारों में अधिकतर प्रशासनिक कार्य कायस्थ समाज के ज़िम्मे ही आते थे. कुशान साम्राज्य में भूमी अनुदान प्रथा और कठिन कर प्रणाली का हिसाब रखने में कायस्थ लोगों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
इसके अलावा 4th सैंचुरी में कायस्थों ने गुप्ता साम्राज्य के दौरान राज्य के अंदरूनी और बाहरी मामलों को संभालने में सफल भूमिका निभाई. 7th सैंचुरी तक कायस्थ समाज अलग अलग राज्यों में बड़े प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किये जा चुके थे जहाँ उन्होंने अपनी एक खास जगह बनाई इन पदों में होम मिनिस्ट्री के सलाहकार और रिवैन्यू और टैक्स अधिकारी जैसे पद शामिल थे.
प्रशासनिक पदों के अलावा कायस्थों ने कला, राजनीति, खेल और लेखन में भी परचम लहराया है. इनमें कई मशहूर नाम शामिल हैं जैसे कि अमिताभ बच्चन, हरिवंशराय बच्चन, मुंशी प्रेम चंद, सोनू निगम, भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, स्वामी विवेकानंद आदि. इसके अलावा स्वंतत्रता संग्राम के दौरान भी कई कायस्थों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है जैसे कि सुभाषचंद्र बोस, खुदिराम बोस, रास बिहारी बोस, हरदयाल, बानिर घोष आदि.
12th सैंचुरी में अधिकतर कायस्थ उत्तर भारत, महाराष्ट्र और बंगाल में पाए जाते थे. महाराष्ट्र में पाए जाने वाले कायस्थ चंद्रसैनी प्रभु कायस्थ होते थे जिनकी ज़िम्मेदारी वेदों का अनुसरण करना होती थी वहीं उत्तर भारतीय चित्रगुप्ती कायस्थों को राज्य का लेखा जोखा संभालने की ज़िम्मेदारी दी जाती थी. बात करें बंगाली क्षत्रिय कायस्थों की तो वह राज्य के शासन और प्रशासन से संबंधित कार्यों में अपना योगदान देते थे.
कायस्थ समाज स्थानीय भाषा के अलावा फारसी, उर्दू और अरबी भाषा भी समझते थे जिस वजह से मुगल शासन में भी उन्हें अच्छे पद मिले. धीरे धीरे कायस्थों ने देश के अलग अलग हिस्सों में अपने पैर पसारे और एक खास जगह हासिल की. ब्रिटिश शासन के समय भी कायस्थ समाज के कई लोगों ने पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, जुडिशल और एक्ज़ीक्यूटिव सिस्टम में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया. 1911 तक कारोबार के छेत्र में कायस्थ समाज ने परचम लहरा दिया था नतीजतन उस दौरान बंगाल के लगभग 40% कारोबारी कायस्थ थे. यहाँ तक की रिसर्चों के अनुसार 6 से 13 एडी के दौरान देश के कुछ इलाकों में कायस्थों को ब्राह्मण और क्षत्रिय भी माना जाता था हालांकि, इस बात की अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
Image source: Ed times and google
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