The Story of Putna's Slaughter by Lord Krishna
यहाँ पढ़े भगवान श्रीकृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध की पौराणिक कहानी। Read here the mythological story of the slaying of the demonic Putna by Lord Krishna.
कंस को जब इस बात की जानकारी मिली कि देवकी की आठवीं संतान जन्म ले चुकी है और गोकुल में है, तब यह बात सुनकर कंस डर गया और उसने अपने मंत्रियों के साथ गोकुल में जन्मे सभी बच्चों को मारने की योजना बनाई।
कृष्ण के जन्म के 6 दिन बाद कंस गोकुल में ढूंढ-ढूंढकर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। कंस ने इसके लिए अपनी मुंह बोली बहन पूतना राक्षसी को भेजा था। पूतना भेष बदलने में माहिर थी और चमत्कारिक भी थी। बताया जाता है कि पूतना में 10 हाथियों जितना बल था। पूतना ने कृष्ण को मारने के लिए अपने स्तनों पर हलाहल विष लगाया था (जिसका भगवान शंकर ने पान किया था) ताकि दूध के साथ विष भी अंदर चला जाए और कृष्ण की मौत हो जाए।
पूतना, सुंदर नारी का रूप धारण कर आकाश मार्ग से सीधा नंदबाबा के महल में गई और सोते हुए कृष्ण को गोद में उठाकर अपना दूध पिलाने लगी। पूतना का मनोहर रूप देखकर यशोदा माता और बलराम की माता रोहिणी भी मोहित हो गए और उनको दूध पिलाने से नहीं रोका। उन्होंने सोचा कि यह स्वर्ग से उतरी देवकन्या है, जो हमारे लाला को देखने के लिए आई है।
अंतर्यामी श्रीकृष्ण सब जान गए और उन्होंने अपने दोनों हाथों से कुच धाम करके उसके प्राण समेत दुग्धपान करने लगे। इससे पूतना चिल्लाने लगी और बाल गोपाल को हटाने लगी लेकिन भगवान हटे नहीं। वह इतनी परेशान हो गई कि वह अपने असली रूप में आकर आकाश में चारों ओर घूमते हुए चिल्लाने लगी। इससे गोकुलवासी भयभीत हो गए।
पूतना अपने राक्षसी स्वरूप में ही पृथ्वी पर गिर गई और जब गिरने की आवाज सुनाई दी तब नंदबाबा, यशोदा माता और रोहिणी उसके पास दौड़े-दोड़े गईं। वहां जाकर देखा कि कृष्ण भयंकर राक्षसी के स्तनपान कर रहे थे। उन्होंने तुरंत बाल कृष्ण को उठाया और अपने पास रखकर बोले कि आज लल्ला की रक्षा भगवान ने खुद की है।
पूतना का वध होने के बाद उसका राक्षसी स्वरूप वहीं पृथ्वी पर पड़ा रहा। पूतना इतनी भयंकर और विशाल थी कि गोकुलवासी उसके अंतिम संस्कार के लिए सोचने लगे कि किस तरह इसका दाह संस्कार किया जाए। तब ग्वालों ने पूतना के अंगों को काट-काट कर उसका अंतिम संस्कार किया। जब उसका अंतिम संस्कार हुआ तब उसके शरीर से चंदन की खुशबू आने लगी थी और वह खुशबू पूरे वातावरण में फैल गई, इसका वर्णन भगवत पुराण में मिलता है।इसके बाद भगवान कृष्ण ने पूतना को मां का दर्जा दिया और उसे मुक्ति प्रदान की।
भगवान के हाथों वध होने के बाद पूतना को लेने के लिए बैकुंठ धाम से विमान आया, जो उसे विष्णु लोक ले गया और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो गई।
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