Jashn-e-Jeet - By Shonel Sharma
Read here the new Poetry "जश्न-ए-जीत" by Poet Shonel Sharma
घटा सा चारों ओर,
फैला है रंग आज।
किसकी ये जीत का,
है गीत गा रहा।
मृदंग भी तो आज,
तरंग फैला रहा।
किसकी ये शान का,
है साज गा रहा।
पुष्प हैं पड़े,
दूर राह तक।
किसके ये चरणों के,
मखमल है बन रहे।
स्वर्ण रोशनी,
बिखरी आकाश में,
ये रश्मि किस ललाट का,
है तेज बन रही।
जीव तक, प्रशंसा के,
हैं राग गा रहे।
किसके ये जश्न-ए-जीत का,
आंनद उठा रहे।
परचम, विश्वजीत का,
फैला अनंत है।
ताज जिसके सर पे है,
गौरव उसी का है।
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