तुंगनाथ, चोपता के आसपास के पर्यटन स्थल

तुंगनाथ, चोपता के आसपास के पर्यटन स्थल

Tourist Places Nearby Tungnath, Chopta

यहाँ पढ़िये तुंगनाथ, चोपता के आसपास के पर्यटन स्थलों के बारे में, जो उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित धार्मिक व पर्यटन स्थल है। Read here about the tourist places around Tungnath, Chopta, which is a religious and tourist place located in Rudraprayag district of Uttarakhand state.

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  • 27, Mar, 2022
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तुंगनाथ, चोपता के आसपास के पर्यटन स्थल

Tourist Places Nearby Tungnath, Chopta

 

1. तुंगनाथ मंदिर (Tungnath Temple) 

Image Source : ukdigital.in

तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के गढ़वाल क्षेत्र के चोपता के तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है यह मंदिर भगवान भोलेनाथ को समर्पित एक पौराणिक मंदिर है। समुद्रतल से इस मन्दिर की ऊंचाई 3470 मी. (11,385 फीट) है और इसे विश्व के सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर का दर्जा प्राप्त है जो चोपता, जिसे मिनी स्वीटजरलैंड के नाम से भी जाना जाता है, से 3 किमी. की दूरी पर तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर का इतिहास आज से करीब हजारों वर्षों से भी पुराना माना जाता है, जिसका निर्माण पांडवों ने कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने हाथों से हुए अपने ही कुल के लोगों के नरसंहार के पाप से बचने के लिए करवाया था। पंचकेदारों में तृतीय केदार के नाम से प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव को “पंचकेदार” रूप में पूजा जाता है।

 

2. चोपता (Chopta)

Image Source : Tripoto

उत्तराखंड में स्थित चोपता एक छोटा गाँव है जोकि एक बहुत ही आकर्षक पर्यटन स्थल है। यह अपनी असाधारण सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यह धरती पर स्वर्ग है। इस जगह की सुंदरता इतनी अवास्तविक है कि कई लोगों ने इसे मिनी स्विट्जरलैंड नाम दिया है। यह वनस्पतियों और जीवों में समृद्ध है और यहां की जैव विविधता शानदार है। चोपता, केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य का भी हिस्सा है। पर्यटक इस शानदार स्थान पर ट्रेकिंग के लिए आते है। चोपता अल्पाइन और देवदार के वृक्षो से सजा हुआ गाँव है। त्रिशूल, नंदा देवी और चौखम्भा की बर्फ से ढकी चोटियाँ इस स्थान के आकर्षण का केंद्र बिंदु बने हुए है।

 

3. चंद्रशिला चोटी (Chandrashila Summit) 

Image Source : traveljaunts

चंद्रशिला चोटी पर चढ़ना मुश्किल है, लेकिन चढ़ाई के बाद वहाँ का नजारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। चंद्रशिला चोटी समुद्रतल से लगभग 3690 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और चोटी के ऊपर से, हिमालय पर्वतमाला के सुरम्य दृश्य जिसमें बर्फ की चोटियाँ शामिल हैं। एक तरफ नंदा देवी, पंचचुली, त्रिशूल, केदार, बंदरपूंछ, नीलकंठ और चौखम्बा जैसी चोटियों का 360° दृश्य प्रस्तुत करता है, तो दूसरी तरफ गढ़वाल घाटी देखी जा सकती थी। चन्द्रशिला और तुंगनाथ के बीच की दूरी लगभग 3 km है। तुंगनाथ से चंद्रशिला के बीच की दूरी पर होने वाली ट्रेकिंग पर्यटकों को बहुत पसंद हैं और पर्यटक इसका लुत्फ़ उठाते हुए नजर आते हैं।

चन्द्रशिला उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ का शिखर बिंदु है। चंद्रशिला को “मून रॉक” मतलब "चन्द्रमा की चट्टान" के नाम से भी जाना जाता है। चन्द्रशिला मुख्य रूप से पांच चोटियों के शिखर के रूप में भी जाना जाता हैं जो कि नंदादेवी, त्रिशूल, केदार, बंदरपूंछ और चौखम्बा के नाम से जानी जाती है।

किंवदंतियों के अनुसार यह वही जगह है, जहाँ भगवान राम ने राक्षसों के राजा रावण को जीतने के बाद तप किया था। यह भी माना जाता है कि चंद्र देव ने यहाँ अपना प्रायश्चित संपादित करने हेतु, इस स्थान पर 84000 वर्ष तक भगवान रुद्र की उपासना की थी। इसलिए इसका नाम चंद्रशिला हुआ। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।

 

4. देवरिया झील (Deoria Lake)

Image Source : Tripoto

देवरिया झील उखीमठ-चोपता मार्ग पर, सारी गाँव से 3 km दूर एवं चोपता से 24-25 km की दूरी पर स्थित हैं। यह एक उच्च ऊंचाई वाली, बहुत ही आकर्षक झील है जो समुद्रतल से तकरीबन 2438 मीटर की ऊंचाई पर और चौखंबा श्रेणी से घिरी हुई है। झील से चौखंबा की चोटियों को आसानी से देखा जा सकता है। सर्दियों में इसके सामने स्तिथ चौखम्भा पर्वत की छाँव जब पानी पर पड़ती है तो वो नजारा बेहद ही खूबसूरत लगता है। देवरिया झील देवदारों, बाँस व बुराँस के पेड़ों से सुशोभित है और यहां आप बर्फ से ढके पहाड़ों को देख सकते हैं साथ ही झील के किनारे कैंपिंग भी कर सकते हैं। देवरिया ताल ना सिर्फ एक सुंदर घूमने की जगह है बल्कि कैंपिंग और हाईकिंग के लिए भी बहुत अच्छी है।

देवरिया ताल, प्राचीन ताल के लिए जाना जाता है जिसका पौराणिक महत्व है। इस ताल का सम्बन्ध कई धार्मिक ग्रंथों, जैसे - महाभारत आदि से जुड़ा है। देवरिया ताल के बारे में कई कहावतें हैं। एक कहावत के अनुसार अपने अग्यातवास के दौरान पांडव जब देवरिया ताल में जल पीने गए, तो यक्ष ने पाँचों पांडवों को बारी-बारी से जल पीने से पहले कुछ प्रश्न पूछे थे, लेकिन युधिष्ठिर को छोड़कर बाकी चारों भाई बिना उत्तर दिए ही इस ताल का जल पी गए और मृत्यु को प्राप्त हुए। फिर जब यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न पूछे तो उन्होनें सभी प्रश्नों का सही उत्तर दिया। इस बात से प्रसन्न होकर यक्ष ने युधिष्ठिर से अपने किसी एक भाई को जीवित करवाने का प्रस्ताव दिया। युधिष्ठिर ने एक तर्क देते हुए नकुल को जीवित करने के लिए कहा, तर्क से प्रसन्न होकर यक्ष ने चारों भाइयों को जीवित करने के साथ ही सरोवर का जल पीने की अनुमति भी दे दी।

देवरिया ताल जाने के रास्ते में नागराज देवता का एक मंदिर आता है, वैसे ये मंदिर भगवान शिव का है। मुख्य भवन के बाहर नंदी है, जबकि मुख्य भवन में शिवलिंग है। इस मंदिर की भी काफ़ी मान्यता है। ये काफ़ी प्राचीन मंदिर है लेकिन इसकी वर्तमान इमारत को बने ज़्यादा समय नहीं हुआ। मान्यता है कि मंदिर में स्थित शिवलिंग पर दूध चढ़ाने पर दूध और पानी अलग हो जाता है, और शिवलिंग पर भगवान के नाग की आकृति भी बनती है ।

 

5. बिसुरीताल झील (Bisurital Lake)

Image Source : wegarhwali

बिसुरीताल झील समुद्रतल से लगभग 4100 मीटर (13451 फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित उत्तराखंड के प्रमुख ट्रैकिंग डेस्टिनेशन में से एक है। यह चोपता से 60 किलोमीटर के ट्रेक पर स्तिथ है। बिसुरीताल/बिसुरीधार झील का निर्माण गर्मियों के मौसम में पहाड़ों पर जमी हुई बर्फ़ के पिघलने की वजह से होता है। लोकल गाइडों के अनुसार बिसुरीताल झील में कई औषधीय गुण छुपे हैं। वहीं इसके पानी में स्नान करने से त्वचा संबंधी कई समस्याएं ठीक हो जाती हैं।

भीड़भाड़ और शोरगुल से दूर बिसुरीताल का नाम आपने शायद कम सुना होगा। इसकी वजह है इसका काफी ऊंचाई पर और सड़क से काफी दूर स्तिथ होना है। बिसुरीताल किसी भी यातायात मार्ग से जुड़ा हुआ नहीं है। इस खूबसूरत झील तक सिर्फ पैदल चलकर ही पहुंच सकते है। बिसुरीताल के पास आज तक केवल वैसे लोग ही पहुंच पाए हैं जिन्हें चुनौतियां एवं रोमांच पसंद हो। लेकिन स्थानीय गाइड्स की सहायता जरूर लें या किसी ट्रैकिंग ऑर्गनाइजेशन की सहायता से भी बिसुरीताल का ट्रैक कर सकते हैं।

बिसुरीताल के पूरे ट्रेक के दौरान संकरे रास्तों, घने जंगलों, नदी-नालों और झरनों को पार करते हुए बिसुरीताल झील तक पहुंचते है। बिसुरीताल ट्रेक का अधिकांश हिस्सा केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य में से होकर गुजरता है जो कि इस ट्रैक को और भी ज्यादा खूबसूरत और शानदार बना देता है। ट्रेक के दौरान अगर किस्मत अच्छी रही तो हिमालयन तेहर, कस्तूरीमृग, मोनाल, हिम तेंदुआ, जंगली बिल्ली जैसे दुर्लभ वन्यजीवों को भी देख सकते है। 

 

6. कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभ्यारण्य (KANCHULA KORAK MUSK DEER SANCTUARY)

Image Source : pixabay

केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य, जिसे केदारनाथ कस्तूरी मृग अभ्यारण्य या कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभ्यारण्य भी कहा जाता है, यहाँ अन्य कस्तूरी मृग के साथ अन्य जंगली पशुओं का प्रजनन केंद्र भी है। यह अभ्यारण्य चोपता का प्रमुख दर्शनीय स्थल है जो चंद्रशिला, तुंगनाथ पर्यटन के प्रमुख आकर्षण में शामिल हैं। यह 1972 में लुप्तप्राय कस्तूरी मृग को संरक्षित करने के लिए स्थापित किया गया था, जो इस क्षेत्र में स्थित है। चोपता से लगभग 7 किमी दूर, कंचुला कोरक कस्तूरी मृग अभ्यारण्य एक संरक्षित वन है, जो 6 वर्ग किमी में फैला और कस्तूरी मृग से भरा हुआ है। यह क्षेत्र पर्यटन की दृष्टि से लोकप्रिय बनता जा रहा है। 

कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राष्ट्रीय पशु है जो कि एक दुर्लभ प्रजाति के जीव हैं। यहाँ कस्तूरी मृग के अलावा अन्य वन्य जीव भी पाए जाते हैं और जो भी पर्यटक वन्य जीवों में रूचि रखते है यह अभ्यारण्य उनके लिए बहुत ही आकर्षक स्थान है। इस अभ्यारण्य में बहुत प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती है। यह एक छोटा वन्य जीव अभ्यारण है लेकिन यहाँ इतने प्रकार के हिरण की प्रजाति पाई जाती है कि वैज्ञानिक भी अभी तक उन सारी प्रजातियों का पता नहीं लगा पाए है। यहाँ गढ़वाल विश्वविद्यालय का एक उच्च ऊंचाई वाला वनस्पति केंद्र भी स्थित है।

 

7. ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ (Omkareshwar Temple, Ukhimath)

Image Source : himalayantoptravels

उखीमठ, उत्तराखंड के चोपता के एक धार्मिक स्थल के साथ-साथ हिमालय के आकर्षक दृश्य को प्रदान करने वाला एक हिल स्टेशन के लिए भी जाना जाता है। समुद्रतल से लगभग 1311 मीटर (4301 फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित, चोपता से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जो उत्तराखंड के सबसे प्राचीन शहरों में से एक माना जाता है। यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती के कई पौराणिक मंदिर आज भी स्थित है। उखीमठ में भगवान केदारनाथ का मंदिर है जो बर्फ से बनी हुई शिवलिंग के कारण श्रधालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।  

उखीमठ के ओंकारेश्वर में सर्दियों के दौरान, केदारनाथ और मध्यमहेश्वर से मूर्तियों (डोली) को उखीमठ रखा जाता है और छह माह तक उखीमठ में इनकी पूजा की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और बाणासुर की बेटी उषा का विवाह हुआ था और बाणासुर की बेटी उषा के नाम पर इस स्थान का नाम उखीमठ पड़ गया।

 

8. दुग्गल बिट्टा (Duggal Bittha) 

Image Source : euttaranchal

मंदिर के शीर्ष के पास, केदारनाथ पर्वत श्रृंखला के ठीक सामने दुगलीबिट्टा में एक वन विश्राम गृह है। उखीमठ से चोपता जाते हुए, चोपता से 7 km पहले दुगलबिट्टा नाम का एक बहुत खूबसूरत हिल स्टेशन आता है। दुग्गलबिट्टा गोपेश्वर और उखीमठ को जोड़ती सड़क के किनारे है। यहाँ अभी कुछ समय पहले ही पर्यटन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनानी शुरू की है। दरअसल यह एक होमलेट है जो कि कुछ समय पहले यह हिल स्टेशन चोपता या चारधाम यात्रा पर आये पर्यटकों के लिए रुकने का स्थल हुआ करता था। लेकिन अब जब सर्दियों के मौसम में अत्यधिक बर्फबारी की वजह से चोपता के लिये सड़क बंद हो जाती है तो पर्यटक दुगलबिट्टा में समय बिताना पसंद करने लगे हैं। यहाँ ट्रेकिंग, साइक्लिंग, बर्ड वाचिंग, फोटोग्राफी और यहाँ के ठन्डे मौसम का मजा ले सकते हैं।

यह समुद्रतल से 2600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है इसकी प्राकृतिक सुंदरता पर्यटकों को लुभाती है ऊंचाई पर स्थित होने के कारण पर्वत के हसीन वादियों के खूबसूरत दृश्य, शांत वातावरण, हल्की-हल्की चिड़ियों का चहचहाहट ध्वनि मन को सुकून व आनंद से भर देती है। स्थानीय लोगों के अनुसार दुगलबिट्टा का मतलब होता है दो पहाड़ों के बीच का स्थान।

 

9. बनियाकुंड (Baniya Kund) 

Image Source : euttaranchal

जो ट्रेकर्स देवरिया ताल से तुंगनाथ और चंद्रशिला के लिए अपना ट्रेक शुरू करते है वो लोग समिट पूरा करने से एक रात पहले बनियाकुण्ड में कैंपिंग करते है, और अगली सुबह बनियाकुण्ड से अपना आगे का ट्रैक शुरू करते हैं। 

तुंगनाथ या चंद्रशिला ट्रेक के दौरान चोपता से 4 km पहले आने वाला बनियाकुण्ड एक बेहद खूबसूरत छोटा-सा पहाड़ी गांव है। वास्तव में चोपता के अल्पाइन घास के मैदानों की शुरुआत बनियाकुण्ड से ही शुरू हो जाती है।

 

10. रोहिणी बुग्याल (Rohini Bugyal) 

Image Source : flicker

रोहिणी बुग्याल देवरिया ताल से 8 किमी के उतार चढ़ाव वाले ट्रेक पर स्तिथ है। रोहिणी बुग्याल एक छोटा सा मखमली घास का मैदान है, लेकिन एक सुंदर शिविर है, जो हिमालय की चोटियों के शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। यहाँ से 2,650 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ झांडी धार से केदार डोम और चौखम्बा चोटियों का दृश्य देखकर प्रकृति का आनंद ले सकते हैं। यहाँ से पैदल ट्रेक करते हुए चंद्रशिला तक भी पहुँच सकते हैं।

 

11. कालीमठ (Kalimath) 

Image Source : bugyalvalley

कालीमठ, उखीमठ आते हुए कुंड से गुप्तकाशी-केदारनाथ मार्ग से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्तिथ है। यहाँ माँ काली का एक भव्य मंदिर है जिसकी मान्यता है कि यहाँ से ही माँ काली धरती में समाकर अंतर्ध्यान हो गयी थी। इस मंदिर का भी उत्तराखंड की संस्कृति में विशेष महत्त्व है।

 

12. सारी गांव (Sari Village) 

Image Source : indiamike

सारी गावं चोपता-उखीमठ रोड पर स्तिथ है जहाँ से देवरिया ताल का पैदल ट्रेक शुरू होता है। यह गांव प्रकृति की मनमोहक छटा को संजोये हुए है और बहुत ही सुन्दर है। अगर आप उत्तराखंड के दुर्गम सुदरवर्ती इलाकों में वक़्त बिताना चाहते हैं तो सारी गांव आइये। घूमने के लिहाज से नहीं बल्कि यहाँ के सामाजिक जीवन को जानने आये तो बेहतर है। पहाड़ों के लोगों को करीब से जानने का मौका मिलेगा और विषम परिस्तिथि में जीवन जीने का भी अंदाज आयेगा।

 

ट्रेकिंग और कैम्पिंग

(Trekking and Camping) 

जिंदगी को थोड़ा रोमांचकारी बनाने के लिए, पहाड़ों को नजदीक से जानने के लिए, प्रकृति की गोद का आनंद लेने के लिए चोपता, देवरियाताल, बनियाकुण्ड, बिसुरीताल झील और दुग्गल बिट्टा में ट्रेकिंग और कैम्पिंग का भरपूर लुफ्त लिया जा सकता है।

तुंगनाथ से चंद्रशिला तक का ट्रेक है, जो थोड़ा मुश्किल है लेकिन कोशिश करने लायक है। देवरियाताल के लिए ट्रेकिंग का भी आनंद लिया जा सकता है, जो यहां से थोड़ी दूरी पर है और एक उच्च ऊंचाई वाली झील है।

 

घूमने का सबसे अच्छा समय

(Best Time To Visit)

यहां पूरे साल कभी भी जा सकते हैं। परंतु वर्षा ऋतु का चुनाव कभी ना करें। वैसे सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मई महीने के बीच के समय को माना जाता है। हरे भरे मैदानों का लुफ्त लेने के लिए मार्च से मई और बर्फ का आनंद लेने के लिए सर्दियों में, लेकिन ध्यान रहे सर्दियों में ज्यादा बर्फबारी होने के कारण तुंगनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं।

Image Source : tripstoreholiday, tripoto, indiahikes



दुनिया का सबसे ऊँचाई पर स्थित शिव मंदिर : तुंगनाथ मंदिर, उत्तराखंड

तुंगनाथ मंदिर का इतिहास

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