Parking ना मिलने से हुए परेशान तो डेप्युटी कमांडेंट ने शुरू किया ParkMate

Parking ना मिलने से हुए परेशान तो डेप्युटी कमांडेंट ने शुरू किया ParkMate

Worried about not getting parking, Deputy Commandant started ParkMate

इस स्टार्टअप का नाम है पार्कमेट (ParkMate), जो गाड़ी पार्क करने की आपकी टेंशन खत्म कर देता है. पार्कमेट की शुरुआत 24 जुलाई 2022 को हुई थी. हालांकि, कंपनी का रजिस्ट्रेशन 21 जुलाई 2021 में ही हो गया था. इस कंपनी को शुरू किया धनंजय भारद्वाज और अभिमन्यु सिंह ने.

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  • 17, Jul, 2023
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आज के वक्त में दिल्ली-एनसीआर में इतनी सारी गाड़ियां हो चुकी हैं कि उनकी पार्किंग (Parking) सबसे बड़ी समस्या हो गई है. कुछ ऐसा ही हाल देश के तमाम बड़े शहरों का है. हर कोई अपनी गाड़ी लेकर निकल तो जाता है, लेकिन उसे ये समझ नहीं आता कि पार्किंग कहा करे. वहीं पार्किंग ना मिल पाने की वजह से लोग जगह-जगह अपनी गाड़ियां खड़ी कर देते हैं, जिसकी वजह से अक्सर जाम भी लग जाते हैं. पार्किंग की समस्या से जूझता तो हर कोई है, लेकिन इसका समाधान निकालने की हर कोई नहीं सोच पाता. डेप्युटी कमांडेंट रह चुके मुरादाबाद के धनंजय भारद्वाज ने भी दिल्ली में पार्किंग की समस्या झेली और उसका खामियाजा भी भुगता. अपने अनुभव से उन्होंने शुरू किया एक ऐसा स्टार्टअप, जो अब लोगों को गाड़ी पार्किंग की सुविधा दे रहा है. 

इस स्टार्टअप का नाम है पार्कमेट (ParkMate), जो गाड़ी पार्क करने की आपकी टेंशन खत्म कर देता है. पार्कमेट की शुरुआत 24 जुलाई 2022 को हुई थी. हालांकि, कंपनी का रजिस्ट्रेशन 21 जुलाई 2021 में ही हो गया था. इस कंपनी को शुरू किया धनंजय भारद्वाज और अभिमन्यु सिंह ने. अभी तक ये स्टार्टअप करीब 1.12 लाख ग्राहकों को सर्विस दे चुका है.

करीब 7 साल पहले ही शुरू हो गई थी ये कहानी

इस कहानी की शुरुआत होती है 2016 में, जब धनंजय केरल में पोस्टेड थे. वहां पर वह भारतीय नौसेना के साथ डेप्युटेशन में थे. यूपी के मुरादाबाद के रहने वाले धनंजय की उसी दौरान शादी तय हो गई. वह अपनी तमाम शॉपिंग दिल्ली से किया करते थे और इसीलिए शादी तय होने के बाद वह मुरादाबाद वापस आए और दिल्ली से शॉपिंग की. धनंजय कहते हैं कि पार्किंग की समस्या दिल्ली में इतनी ज्यादा है कि वह जब भी शॉपिंग के लिए जाते अपने परिवार को बाजार में गाड़ी से उतार कर कहते- 'आप लोग चलो, मैं गाड़ी के लिए पार्किंग की जगह ढूंढ कर आता हूं.' ये सिर्फ धनंजय ही नहीं, बल्कि बहुत सारे लोगों की समस्या है. उस बीच तो वह पार्किंग की समस्या से जूझते रहे और शादी का कार्यक्रम भी धीरे-धीरे खत्म हो गया. लेकिन पार्किंग की समस्या ने उनके दिमाग में घर कर लिया और वह हमेशा इसके बारे में सोचते थे.

इसके बाद धनंजय का ट्रांसफर आंध्र प्रदेश हो गया. 2016 के दौरान ही उन्होंने एक गाड़ी भी ली, जो बीएमडब्ल्यू एक्स1 थी. कुछ सालों बाद 2019 में दिल्ली के करोल बाग में एक शादी का फंक्शन था, जिसके लिए उन्हें दिल्ली आना था. उस वक्त धनंजय ने सोचा कि नई गाड़ी में मां को थोड़ा घुमाया जाए, इसलिए वह आंध्र प्रदेश से गाड़ी चलाकर दिल्ली आए. वह पास में ही गफ्फार मार्केट से मां को एक फोन दिलाने के लिए गए. वहां पर भी उन्हें वही दिक्कत झेलनी पड़ी, पार्किंग के लिए जगह ढूंढने की. तभी उन्हें पीली टीशर्ट पहने एक लड़का दिखा, जिस पर ऑथराइज पार्किंग लिखा था. जब उससे बात की तो पता चला कि वहां गाड़ी पार्क करने के लिए चाबी भी छोड़नी होगी. धनंजय ने देखा कि सभी लोग अपनी गाड़ी की चाबी छोड़ रहे थे तो उन्होंने भी ऐसा ही किया और पार्किंग की पर्ची लेकर वहां से चले गए. 

जब वह वापस लौटे तो गाड़ी वहां नहीं थी जहां पार्क की थी. पार्किंग वाले से बोला तो उसने चाबी देकर कहा कि आप देख लो गाड़ी कहां गई. जब धनंजय ने जिम्मेदारी की बात कही तो उसने पर्ची दिखाते हुए कहा कि पार्किंग में गाड़ी की जिम्मेदारी गाड़ी मालिक की (Parking at Owner's Risk) है. थोड़ी देर तक तो धनंजय को समझ नहीं आया कि ये सब क्या हुआ. उन्होंने सोचा कि अगर पार्किंग के 120 रुपये चुकाने के बावजूद गाड़ी सुरक्षित नहीं तो क्या करें. उसके बाद उन्होंने जब लोकल पुलिस अथॉरिटी से बात की तो पता चला कि गाड़ी को टो कर लिया गया है. गाड़ी टो करने की वजह बताई गई कि वह पीली लाइन के बाहर थी. पार्किंग की पर्ची होने की वजह से उन्हें कोई चालान तो नहीं भरना पड़ा, लेकिन जब गाड़ी टो की गई तो उस दौरान फ्रंट एक्सल बुरी तरह डैमेज हो गया. इसकी वजह से उसे रिपेयर करने में धनंजय को करीब 1.75 लाख रुपये खर्च करने पड़े. वहीं 7 दिन की छुट्टी के लिए आए धनंजय 19 दिन तक वापस नहीं लौट पाए.

धनंजय और अभिमन्यु ने शुरू कर दी रिसर्च

धनंजय के साथ अभिमन्यु सिंह भी उस फंक्शन में पहुंचे थे. दोनों ने मिलकर तय किया कि इस पर एक टेक्निकल पेपर लिखते हैं और फिर उसे तमाम सरकारी डिपार्टमेंट में भेज देंगे. इसके बाद दोनों ने रिसर्च शुरू कर दी और जानना शुरू किया कि दुनिया भर में तमाम देश भारी ट्रैफिक की समस्या से कैसे निपट रहे हैं. उसी बीच पार्किंग से जुड़े कुछ स्टार्टअप भी आने शुरू हुए. एक ऐसे ही स्टार्टअप की सेवा लेते हुए धनंजय ने लाजपत नगर में पार्किंग की प्री-बुकिंग की, लेकिन जब वहां पहुंचे तो पता चला कि लोकेशन से पार्किंग करीब 1 किलोमीटर दूर है. यही समस्या उन्हें चांदनी चौक में भी झेलनी पड़ी. उनकी रिसर्च के दौरान भी उन्हें ऐसे-ऐसे आंकड़े देखने को मिले कि उन्होंने पार्किंग से जुड़ा एक स्टार्टअप शुरू करने की ठान ली. इसके बाद दोनों ने इस्तीफा दिया और पार्कमेट पर काम शुरू कर दिया. धनंजय कहते हैं कि नेशनल सर्विस में इस्तीफा इतनी आसानी से नहीं स्वीकार होता है, तो उन्हें नौकरी छोड़ने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी.

पार्किंग से जुड़े कुछ हैरान करने वाले आंकड़े

धनंजय और अभिमन्यु को पार्किंग से जुड़े जो आंकड़े मिले, वह काफी हैरान करने वाले हैं. पार्किंग की वजह से जगह-जगह जो ट्रैफिक जाम लगते हैं, उसकी वजह से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु को हर साल करीब 46 हजार करोड़ रुपये का इकनॉमिक अपॉर्च्युनिटी का नुकसान होता है. एक आम कार वाला साल में 5 दिन सिर्फ पार्किंग ढूंढने में बर्बाद कर देता है. अगर एक 1.4 लीटर की बलेनो जैसी कार का उदाहरण ले लें तो साल में करीब 100 लीटर से ज्यादा तेल तो सिर्फ पार्किंग ढूंढने में लग जाता है. 

एक शानदार लाइफस्टाइल छोड़कर चुना संघर्ष वाला रास्ता

धनंजय भारद्वाज क्लास-1 गैजेटेड ऑफिसर थे, जो देश का छठा सबसे अच्छी सैलरी वाला प्रोफेशन है. उन्हें कई सारे मेडल भी मिले हैं. एक डेप्युटी कमांडेंट की तरह तो धनंजय एक ऐसी लाइफ स्टाइल जी रहे थे, जिसके लोग सिर्फ सपने देखते हैं, लेकिन तमाम लोगों की एक बड़ी समस्या (पार्किंग) को सुलझाने के लिए उन्हें वो लाइफस्टाइल छोड़ी और संघर्ष का रास्ता चुना. अभिमन्यु भी SAIL में जॉब कर रहे थे, जहां उनका पैकेज करीब 12 लाख का था. उन्होंने भी पार्किंग की समस्या से निपटने के लिए सरकारी नौकरी की हर सुविधा और तगड़े सैलरी पैकेज को छोड़ दिया.

कैसे काम करता है पार्कमेट का ऐप?

आपको सबसे पहले पार्कमेट का ऐप डाउनलोड करना है और फिर उसमें लॉगिन होना है. इसके बाद वैले बुकिंग (Book a valet) पर क्लिक कर के डेस्टिनेशन डाल देना है. उसके बाद आपको लोकेशन पर पहुंचना है, जहां आपको पहले से ही अटेंडेंट खड़ा मिलेगा, जो ओटीपी वेरिफाइड होगा. वैले आपकी गाड़ी लेगा और पास की पार्किंग में ले जाकर लगा देगा. आप अपने ऐप में गाड़ी की लाइव लोकेशन देख सकते हैं. जब पार्किंग में गाड़ी खड़ी होगी तो आपको उसकी 360 डिग्री इमेज और पार्किंग स्लिप की फोटो भेज दी जाएगी, जिसे आप ऐप में देख सकते हैं. इस ऐप के जरिए आपको जियोटैगिंग की सुविधा भी मिलती है, यानी अगर आपकी गाड़ी एक तय इलाके से बाहर गई तो तुरंत पता चल जाएगा. यानी गाड़ी चोरी होने का भी डर नहीं. इतना ही नहीं, आपकी गाड़ी 5 अलग-अलग तरह के इंश्योरेंस के तहत पूरी तरह से सुरक्षित रहती है तो पार्कमेट आपकी गाड़ी ऑनर के रिस्क पर पार्क नहीं करेगा, बल्कि पूरी जिम्मेदारी उसकी खुद ही होगी.

क्या है कंपनी का बिजनेस मॉडल?

पार्कमेट की तरफ से जो पार्किंग ऐप मुहैया कराया जा रहा है, वह दरअसल कंपनी के बिजनेस का एक छोटा सा हिस्सा है, जो बी2सी मॉडल पर आधारित है. इस ऐप के तहत पार्किंग चार्ज के रूप में हर व्यक्ति से कंपनी को 49 रुपये का चार्ज मिलता है. पार्किंग ऐप से कंपनी को यही कमाई होती है. इसके अलावा भी कंपनी के 3 प्रोडक्ट हैं, जो बी2बी मॉडल पर आधारित हैं.

त्रिशूल सिस्टम

पार्कमेट का एक मॉडल है त्रिशूल सिस्टम, जिसमें तीन चीजें हैं. पहला है फास्टैग, दूसरा है एएनपीआर कैमरा (ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रिकॉग्निशन कैमरा) और तीसरा है यूनी पे क्यू आर कोड. इन तीनों को जोड़कर त्रिशूल सिस्टम बनाया गया है. इसके तहत एएनपीआर कैमरे से नंबर प्लेट स्कैन हो जाती है और फास्टैग से भुगतान हो जाता है. वहीं अगर फास्टैग में पैसे ना हों तो आप यूनी पे की मदद से भुगतान कर सकते हैं. इस सिस्टम को पूरी तरह ऑटोमेटिक कर दिया गया है, जिसमें किसी भी शख्स की जरूरत नहीं होती है. सारे ट्रांजेक्शन डिजिटल हैं, इसलिए एक भी पैसा चोरी नहीं हो सकता है. पार्कमेट ने लखनऊ नगर निगम का पार्किंग का ट्रांजेक्शन 2.5 गुना बढ़ाया है यानी रेवेन्यू 250 फीसदी बढ़ा है, जो पहले चोरी हो रहा था. यह सब पार्कमेट ने सिर्फ 45 दिन में मुमकिन किया है.

कवच सिस्टम

इसे रेसिडेंशियल गेटिंग और एंट्री-एग्जिट के लिए बनाया गया है. इसमें एएनपीआर कैमरा का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके तहत लाइसेंस प्लेट रजिस्टर हो जाती है. जब कैमरा लाइसेंस प्लेट स्कैन करता है, तभी गेट खुलता है. इसके तहत लोग अपनी गाड़ी लॉक भी कर सकते हैं, तो नंबर प्लेट स्कैन होने के बाद गेट नहीं खुलेगा और कोई भी आपकी गाड़ी आपकी इजाजत के बिना बाहर नहीं ले जा पाएगा.

मित्रा वैले

इसके जरिए वैले सिस्टम को पेपर लेस कर दिया गया है. जब आप होटल से निकल रहे हों तभी आप ऐप से मित्रा वैले के जरिए अपनी गाड़ी मंगवा सकेंगे और आपको नीचे आकर गाड़ी का इंतजार नहीं करना होगा.

अब तक कितनी फंडिंग मिली?

पार्कमेट ने अभी तक एक बार फंडिंग उठाई है. यह पैसे प्री-सीड राउंड के तहत उठाए गए थे. फंडिंग राउंड का अमाउंट अभी सीक्रेट रखा गया है. वहीं कंपनी अभी सीड-राउंड की प्रोसेस में हैं, जो जल्द ही पूरी हो जाएगी.

भविष्य का क्या है प्लान?

पार्कमेट के लिए अभी शुरुआत है तो कंपनी टेक को और बेहतर करने की दिशा में काम करेगी. मौजूदा वक्त में ये सर्विस लखनऊ और दिल्ली एनसीआर में है, जिसे आने वाले दिनों में मुंबई और पुणे में लॉन्च किया जाएगा. पार्कमेट का मुख्य एजेंडा है यूजर्स की प्रॉब्लम सॉल्व करना , इसलिए को-फाउंडर्स इसे धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहे हैं, ताकि लोगों की दिक्कत का समाधान होता जाए. धनंजय और अभिमन्यु कहते हैं कि वह तेजी से आगे नहीं भागना चाहते हैं, बल्कि एक सस्टेनेबल बिजनेस बनाना चाहते हैं.

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