Makar Sankranti : Importance and Mythology
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रान्ति? जानिए इसका महत्व व इससे जुड़ी कथाएँ | Why do we celebrate Makar Sankranti? Read here it's importance and related mythology
मकर संक्रान्ति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने की घटना से जुड़ा है। जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। खगोलशास्त्र के अनुसार, सूर्य जब दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, या पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति हर वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाई जाती है। सूर्य एक साल में 12 राशियों में क्रमश: गोचर करते हैं, वह जिस राशि में प्रवेश करते हैं, उसकी संक्रांति होती है। 14 जनवरी 2022 को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए यह सूर्य की मकर संक्रांति है। मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और जरूरतमंद लोगों को काला तिल, तिल के लड्डू, चावल, सब्जियां, दाल, हल्दी, फल आदि दान करने की परंपरा है।
शास्त्रों के अनुसार सूर्य जब दक्षिणायन में रहते हैं तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता और अंधकार का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं एवं इसी मार्ग से पुण्यात्माएं शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं।
देशभर में मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न नामों से जाना जाता है। चलिए जानते हैं इनके बारे में…
खिचड़ी- मकर संक्रांति को खिचड़ी भी कहा जाता है। खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड, उत्तराखंड में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाई जाती है और इस वजह से इसका एक नाम खिचड़ी भी है। मकर संक्रांति को गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा है। प्रयागराज में इस दिन से ही माघ मेले का आयोजन होता है। मकर संक्रांति को माघी के नाम से भी जाना जाता है।
पौष संक्रांति- पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति को पौष संक्रांति कहते हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हिन्दू कैलेंडर के पौष माह में होता है, इसलिए इसे पौष संक्रांति कहते हैं। इस दिन स्नान के बाद काला तिल दान किया जाता है। मकर संक्रांति पर ही वर्ष में एक बार गंगासागर में स्नान का आयोजन होता है। यहां देशभर से लोग स्नान के लिए आते हैं।
उत्तरायण पर्व- गुजरात व राजस्थान में मकर संक्रांति को उत्तरायण पर्व के नाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर वहां पर पतंग उत्सव का आयोजन होता है। इसमें शामिल होने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं। उत्तरायण के दिन स्नान और व्रत करने का विधान है।
संक्रांति- आंध्रप्रदेश में संक्रांति नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है। महाराष्ट्र में भी इसे मकर संक्रांति या संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। यहां लोग गजक और तिल के लड्डू खाते एवं दान करते हैं।
माघी संगरांद- जम्मू में यह पर्व 'उत्तरैन' और 'माघी संगरांद' के नाम से विख्यात है। कुछ लोग इसे उत्रैण, अत्रैण' अथवा 'अत्रणी' के नाम से भी जानते है।
मकर संक्रमण- दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक में मकर संक्रांति को मकर संक्रमण कहते हैं। वहां पर भी इस दिन स्नान और दान करने की परंपरा है। सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो वह संक्रमण काल होता है। जिस राशि में करता है, उससे जुड़कर वह संक्रमण कहलाता है। 14 जनवरी या 15 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए यह मकर संक्रमण कहलाता है।
बिहू- असम में मकर संक्रांति के दिन बिहू मनाया जाता है। इसे माघ बिहू या भोगाली बिहू भी कहा जाता है। इस दिन लोग नई फसलों की खुशी में उत्सव मनाते हैं और कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं।
पोंगल- तमिलनाडु में मकर संक्रांति की तरह ही पोंगल मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव को खीर का भोग लगाते हैं।
लोहड़ी- पंजाब, दिल्ली और हरियाणा समेत कुछ अन्य जगहों पर मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व लोहड़ी मनाई जाती है। इस दिन को नई फसल की खुशी में मनाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन ही भगवान विष्णु के अंगूठे से निकली देवी गंगाजी भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान हुई थी। इसीलिए इस दिन बंगाल के गंगासागर में कपिल मुनि के आश्रम पर एक विशाल मेला लगता है तथा साल में एक बार गंगासागर में स्नान का आयोजन होता है।
इसीलिए कहा जाता है- "सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।"
मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्न्नान करने का बहुत महत्व है। एक अन्य पौराणिक प्रसंग के अनुसार भीष्म पितामह महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे थे। उन्होंने मकर संक्रान्ति पर ही अपने प्राण त्यागे थे। यह भी मान्यता है कि इस दिन मां यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।
कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी बनाने की प्रथा बाबा गोरखनाथ के समय से शुरू हुई थी। कहते है कि जब खिलजी ने आक्रमण किया था, तब नाथ योगियों को युद्ध के दौरान भोजन बनाने का समय नहीं मिलता था और वे भूखे ही लड़ाई के लिए निकल जाते थे। उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ पकाने की सलाह दी थी। ये झटपट तैयार हो जाती थी। इससे योगियों का पेट भी भर जाता था और ये काफी पौष्टिक भी होती थी।
बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। खिलजी से मुक्त होने के बाद मकर संक्रान्ति के दिन योगियों ने उत्सव मनाया और उस दिन खिचड़ी का वितरण किया। तब से मकर संक्रान्ति पर खिचड़ी बनाने की प्रथा की शुरुआत हो गई। मकर संक्रान्ति के मौके पर गोरखपुर के बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेला भी लगता है। इस दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और लोगों में इसे प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।
कहा जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर में जाते हैं। चूंकि शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं, उनके घर में सूर्य के प्रवेश मात्र से शनि का प्रभाव क्षीण हो जाता है। क्योंकि सूर्य के प्रकाश के सामने कोई नकारात्मकता नहीं टिक सकती। मान्यता है कि मकर संक्रांति पर सूर्य की साधना और इनसे संबंधित दान करने से सारे शनि जनित दोष दूर हो जाते हैं। ज्योतिष में उड़द की दाल को शनि से संबन्धित माना गया है। ऐसे में उड़द की दाल की खिचड़ी खाने से शनिदेव और सूर्यदेव दोनों की कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा चावल को चंद्रमा का कारक, नमक को शुक्र का, हल्दी को गुरू बृहस्पति का, हरी सब्जियों को बुध का कारक माना गया है। वहीं खिचड़ी की गर्मी से इसका संबन्ध मंगल से जुड़ता है। इस तरह मकर संक्रान्ति के दिन खिचड़ी खाने से कुंडली में करीब करीब सभी ग्रहों की स्थिति बेहतर होती है।
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