Birth Story of Shri Krishna
यहाँ पढ़िये भगवान श्री कृष्ण की जन्म कथा। Read here the Birth Story of lord Shri Krishna
यह बात द्वापरयुग की है, जब धरती पर अधर्म का बोझ बढ़ता जा रहा था। राक्षसों ने धरती पर हाहाकार मचा रखा था। इस बात से बहुत परेशान होकर धरती मां गाय का रूप धारण करके देवताओं के पास गई और उनसे कहा, “हे देवतागण, मेरी रक्षा करें। इन राक्षसों का आतंक मुझ पर बढ़ता जा रहा है। इन्हें खत्म करें।” धरती मां की इस बात का देवताओं के पास कोई समाधान नहीं था। इस पर उन्होंने ब्रह्मा जी के पास जाने का निर्णय लिया और धरती मां के साथ सभी देवता, ब्रह्मा जी के पास गए।
वहां पहुंचकर उन्होंने ब्रह्मा जी से विनती की, “प्रभु, मेरे ऊपर से दैत्यों का यह भार कम करें। मैं बहुत परेशान हो गई हूं।” ब्रह्मा जी ने उनकी तरफ देखा और कहा, “इसका उपचार सिर्फ भगवान विष्णु कर सकते हैं। देवी, आप उन्हीं के पास जाइए।”
ब्रह्मा जी का कहा मानकर उनके साथ धरती मां और सभी देवतागण, भगवान विष्णु के निवास क्षीर सागर पहुंचे। उस समय वह शेष नाग पर लेटे हुए आराम कर रहे थे। वहां पहुंचकर सभी ने उन्हें प्रणाम किया और पूरी कहानी सुनाई। पूरी कहानी सुनकर भगवान विष्णु ने कहा, “हे देवी परेशान न हो। मैं मनुष्य के रूप में पृथ्वी लोक पर अवतार लूंगा और पाप को खत्म करूंगा।” उनकी यह बात सुनकर धरती मां खुशी-खुशी वहां से चली गईं।
इधर मथुरा में राजा उग्रसेन राज किया करते थे। वे दयालु राजा थे, लेकिन उनका बेटा कंस बहुत अत्याचारी और लालची था। उसे राजगद्दी का बहुत मोह था। एक दिन उसने अपने बल से राजा उग्रसेन को सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और खुद राजा बन गया, लेकिन कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्यार करता था।
एक दिन देवकी की शादी राजा शूरसेन के पुत्र वासुदेव के साथ हुई। शादी के बाद जब कंस देवकी को विदा करने लगा, तभी आकाशवाणी हुई कि देवकी की 8वीं संतान उसका वध करेगी। इतना सुनते ही कंस के पैरों तले जमीन खिसक गई और उसने देवकी और वासुदेव को जेल में डाल दिया।
इसके बाद वह सोचने लगा कि देवकी की 8 संतानों में से कौन से नंबर का पुत्र मेरा वध करेगा? इस असमंजस के कारण उसने देवकी की सभी संतानों को मारने का निर्णय लिया। एक-एक करके उसने देवकी की 6 संतानों को एक चट्टान पर पटक कर मार डाला।
भगवान विष्णु की योजना के अनुसार, शेषनाग देवकी की 7वीं संतान के रूप में जन्म लेने वाले थे। जब देवकी 7वीं संतान से गर्भवती थीं, तो देवताओं और भगवान ने तरकीब से उनका गर्भपात करवा दिया। साथ ही उस संतान को वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी के गर्भ में पहुंचा दिया गया था। बाद में इस संतान को श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में जाना गया।
इसके बाद भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में देवकी की 8वीं संतान ने जन्म लिया। उसके जन्म लेते ही सारे सैनिक अपने आप सो गए। देवकी और वासुदेव की हथकड़ियां खुल गई और जेल के दरवाजे भी अपने आप खुल गए। उन दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था और तभी आकाशवाणी हुई कि इस पुत्र को गोकुल में नंदबाबा के यहां छोड़ आओ।
उन्होंने ठीक वैसा ही किया। उन्होंने टोकरी में श्री कृष्ण को लेटाया और यमुना नदी के पार गोकुल में छोड़कर आ गए और वहां पालने में सोई बेटी को अपने साथ जेल में ले आए। वासुदेव के वापस आने के बाद सब कुछ पहले जैसा हो गया। हथकड़ियां और जेल के दरवाजे वापस लग गए और पहरेदार होश में आ गए।
होश में आते ही सैनिकों ने देवकी की 8वीं संतान की खबर जाकर कंस को दे दी। कंस दौड़ता हुआ जेल आया और देवकी की गोद से उसकी संतान को छीन लिया। इसके बाद जैसे ही कंस ने उसे मारने के लिए हाथ में उठाया, वह उसके हाथ से छूट कर हवा में उड़ गई और बोली, “दुष्ट कंस, मैं योगमाया हूं। तुझे मारने के लिए भगवान ने गोकुल में अवतार ले लिया है। अब तेरा अंत निश्चित है।”
इसके बाद श्री कृष्ण को मारने के लिए कंस ने कई राक्षसों को गोकुल भेजा, लेकिन कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर पाया। अंत में उन्होंने कंस का संहार किया और मथुरा को उसके आंतक से आजादी दिलाई।
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