Arjuna and Draupadi's marriage
यहाँ पढ़िये अर्जुन और द्रौपदी के विवाह की पौराणिक कथा। Read here the legend of the marriage of Arjuna and Draupadi.
द्वापर युग के महाभारत काल की बात है, पांचाल नामक नगर में राजा द्रुपद का राज हुआ करता था। राजा द्रुपद की एक बेटी थी, जिसका नाम द्रौपदी था। द्रौपदी बहुत ही सुंदर और सुशील कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हो गई, तो राजा द्रुपद ने उसके विवाह के लिए स्वयंवर रखने का निर्णय लिया।
इस दौरान, पांडव मुनि का भेष धारण करके पांचाल से कुछ कोस दूर एक गांव में रह रहे थे। जब उन तक द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना पहुंची, तो वेदव्यास के आदेश पर उन्होंने पांचाल जाकर स्वयंवर में भाग लेने का निर्णय लिया। पांचाल जाते समय उन्हें रास्ते में धौम्य नामक एक ब्राह्मण मिला, जिसके साथ वो ब्राह्मण का भेष धारण करके स्वयंवर में पहुंचे।
स्वयंवर में दूर-दूर से बड़े-बड़े राजा महाराजा और राजकुमार पधारे हुए थे। वहां पहुंच कर पांडवों ने ब्राह्मणों के बीच अपना स्थान ग्रहण कर लिया। उस सभा में श्रीकृष्ण भी अपने बड़े भाई बलराम और गणमान्य यदुवंशियों के साथ बैठे हुए थे। सभा की एक ओर सभी कौरव भी विराजमान थे। कुछ देर बाद सभा में राजा द्रुपद पधारे और उन्होंने स्वयंवर के लिए पधारे सभी मेहमानों का स्वागत किया। अब सब की आंखें राजकुमारी द्रौपदी का इंतजार कर रही थीं। सब यही सोच रहे थे कि राजकुमारी उन्हीं को अपना पति चुनेगी।
कुछ समय बाद सभी का इंतजार खत्म हुआ और राजकुमारी द्रौपदी एक सुंदर-सी परी की तरह सभा में पधारी। उन्हें देखकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए। राजकुमारी ने सभा के बीच से गुजरते हुए, अपने पिता के सिंहासन के समीप अपना स्थान ग्रहण कर लिया।
इसके बाद सभी सभागणों को संबोधित करते हुए राजा द्रुपद ने कहा, “मैं राजा द्रुपद, इस स्वयंवर में आप सभी मेहमानों का स्वागत करता है। मैं इस बात से पूरी तरह परिचित हूं कि आप सभी यहां मेरी पुत्री द्रौपदी से विवाह करने आए हैं, लेकिन इस स्वयंवर की एक शर्त है। आप सभी को सभा के बीचों-बीच एक स्तंभ पर गोल घूमती हुई नकली मछली लटकती दिख रही होगी। उस मछली के ठीक नीचे, धरती पर एक तेल का पात्र रखा है, जिसमें उस मछली का प्रतिबिंब दिख रहा है। स्वयंवर की शर्त यह है कि जो भी धनुर्धारी प्रतिबिंब में देखकर, मछली की आंख पर निशाना लगा देगा, वह इस स्वयंवर का विजेता होगा और उसी से द्रौपदी का विवाह होगा।”
राजा द्रुपद की यह बात सुन कर, सभी राजा बारी-बारी आकर, मछली पर निशाना साधने का प्रयास करने लगे लेकिन कोई सफल नहीं हो पाया। असफल व्यक्तियों में शिशुपाल, दुशासन, दुर्योधन और अन्य कौरवों का भी नाम शामिल था। अंत में पांडवों की बारी आई। उनकी ओर से अर्जुन ने मछली की आंख पर निशाना लगाने के लिए धनुष उठाया और एक ही बार में तीर निशाने पर लगा दिया। यह देखकर सब आश्चर्यचकित हो गए कि एक ब्राह्मण ने इतना सटीक निशाना लगा दिया।
इसके बाद अपने पिता की आज्ञा से द्रौपदी आगे बढ़ी और अर्जुन के गले में वरमाल डाल दी और दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
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