द्रौपदी का चीरहरण

द्रौपदी का चीरहरण

Draupadi Ka Cheer Haran

यहाँ पढ़िये द्रौपदी के चीरहरण की पौराणिक कथा और जानिए कैसे बचाया भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को वस्त्र हरण से। Read here the mythological story of Draupadi's Cheerharan and Know how Lord Krishna saved Draupadi from cheer haran (loss of clothes).

  • Pauranik kathaye
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  • 25, May, 2022
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द्रौपदी का चीरहरण

महाभारत ऐसा महाकाव्य है, जिसमें कई छोटी-बड़ी शिक्षाप्रद घटनाओं का जिक्र है। द्रौपदी चीरहरण भी महाभारत की एक ऐसी ही घटना है। द्रौपदी पांचाल देश की राजकुमारी थी और उसका विवाह अर्जुन से हुआ था। अर्जुन ने द्रौपदी के स्वयंवर में मछली की आंख में निशाना साधकर उससे विवाह किया था, लेकिन माता कुंती के अंजाने में दिए एक आदेश से द्रौपदी पांडवों यानी पांचों भाइयों की पत्नी बन गई।

 

एक बार की बात है जब पांचों भाइयों में सबसे बड़े युधिष्ठिर इन्द्रप्रस्थ नगर पर राज कर रहे थे। उस समय हस्तिनापुर का राजकुमार दुर्योधन था और पांचों पांडव उसके चचेरे भाई थे। दुर्योधन कौरवों में सबसे बड़ा था और अपने चचेरे भाइयों यानी पांडवों से जलता था।

 

दुर्योधन सबसे ज्यादा अपने चालाक मामा शकुनि को मानता था। शकुनि ने दुर्योधन को सलाह दी कि वो पांडवों को जुआ खेलने के लिए आमंत्रित करे। पांडवों ने अपने भाई दुर्योधन का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। उस सभा में भरत वंश के शासक धृतराष्ट्र, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और महात्मा विदुर जैसे महान लोग भी उपस्थित थे। शकुनि मामा ने छल कपट से पांडवों को हराना शुरू किया।

 

इस खेल में पांडव अपना राज्य हार गए। धर्मराज युधिष्ठर ने स्वयं और अपने चारों भाइयों को भी दांव पर लगाया और हार गए। अंत में जब दांव पर लगाने के लिए उनके पास कुछ नहीं बचा, तो उन्होंने अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगा दिया। दुर्योधन तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रहा था। शकुनि मामा की मदद से उसने जुए में द्रौपदी को भी जीत लिया।

 

द्रौपदी को जीतने के बाद दुर्योधन ने अपने भाई दुशासन को आदेश दिया कि वो द्रौपदी को भरी सभा में बाल पकड़कर और घसीटते हुए लेकर आए। भाई से आज्ञा मिलते ही दुशासन द्रौपदी के कक्ष में गया और उसे सभा में चलने को कहा। रानी द्रौपदी बहुत ही स्वाभिमानी और पतिव्रता स्त्री थीं, इसलिए उन्होंने दुशासन के साथ चलने से मना कर दिया। दुशासन ने गुस्से में आकर द्रौपदी के बाल पकड़ लिए और उसे खींचते हुए भरी सभा में लाकर खड़ा कर दिया।

 

दुर्योधन ने दुशासन को आज्ञा दी कि वो द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर दे। दुशासन ने जैसे ही द्रौपदी के वस्त्र को हाथ लगाया, द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को मदद के लिए पुकारा। श्रीकृष्ण अपने भक्तों को कभी नाराज नहीं करते। कृष्ण ने जब द्रौपदी की करुण पुकार सुनी, तो उन्होंने द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाना शुरू कर दिया। दुशासन, द्रौपदी का चीर खींचता रहा, लेकिन वो जितना खींचता, वस्त्र उतना बढ़ता जाता। अंत में दुशासन थक कर हार गया, किन्तु द्रौपदी का वस्त्र हरण नहीं कर सका। ऐसा कहा जाता है महाभारत युद्ध के पीछे सबसे बड़ा कारण द्रौपदी चीरहरण ही था।

 

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