नितिन गडकरी के एक निर्णय से टोल सिस्टम में आया बदलाव। जानिए सैटेलाइट आधारित GNSS कैसे काम करता है।

नितिन गडकरी के एक निर्णय से टोल सिस्टम में आया बदलाव। जानिए सैटेलाइट आधारित GNSS कैसे काम करता है।

A decision by Nitin Gadkari brought about a change in the toll system. Know how satellite-based GNSS works.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने भारत में Global Navigation Satellite System (GNSS) को मंजूरी दी है। यह नया टोल सिस्टम GPS और सैटेलाइट तकनीक का उपयोग करता है, जिससे टोल प्लाजा पर रुकने की आवश्यकता नहीं होती।

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  • 12, Sep, 2024
Jyoti Ahlawat
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A decision by Nitin Gadkari brought about a change in the toll system. Know how satellite-based GNSS works.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। भारत में Global Navigation Satellite System (GNSS) को मंजूरी दे दी गई है, जिसे GPS टोल और सैटेलाइट टोल भी कहते हैं। आज हम आपको इसके काम करने के तरीके और सैटेलाइट इंटरनेट के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। इससे आपको समझने में आसानी होगी कि सैटेलाइट सिस्टम का अर्थ क्या है और यह कैसे कार्य करता है।

भारत पहला देश नहीं है जहां GNSS लागू हो रहा है; इससे पहले कई देशों में यह प्रणाली काम कर रही है। प्रत्येक देश में इसका कार्यप्रणाली भिन्न है, लेकिन यह जाम से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित हुआ है और नागरिकों को राहत भी प्रदान की है। आइए जानते हैं- नितिन गडकरी का यह निर्णय कैसे काम करेगा। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने लंबे समय से इस प्रणाली को लागू करने की बात की थी। इसमें कई सुविधाएं उपलब्ध हैं, और इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि आपको टोल प्लाजा पर रुकने की जरूरत नहीं होगी, जैसा कि Fastag में होता है। यह एक ऐसा सिस्टम है जहां आप अपनी गाड़ी सीधे ले जाकर टोल प्लाजा से गुजर सकते हैं और टोल का भुगतान आपके अकाउंट से स्वतः कट जाता है। आपको इसके लिए कुछ अलग से करने की आवश्यकता नहीं है। कई देशों में यह प्रणाली पहले से ही सफलतापूर्वक लागू है।

अब बात करते हैं कि यह भारत में कैसे कार्य करेगा। मौजूदा जानकारी के अनुसार, यह सिस्टम पहले केवल कमर्शियल वाहनों के लिए लागू किया जाएगा। इसका मतलब है कि शुरुआत में केवल वाणिज्यिक गाड़ियां ही इसका उपयोग कर सकेंगी, और इसके बाद इसे निजी कारों के लिए भी शुरू किया जाएगा। वर्तमान में, इसे परीक्षण मोड में रखा जाएगा, और इसीलिए पहले इसे केवल कमर्शियल वाहनों पर लागू किया जाएगा। इसके लिए हाइवे पर विशेष लेन की व्यवस्था पर भी विचार किया जा रहा है, जिससे सभी वाहन इसके माध्यम से गुजर सकें।

फीस के मामले में, स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं है। FASTag की फीस 200-300 रुपए के बीच होती थी, लेकिन यह नया सिस्टम अपेक्षाकृत महंगा होगा। रिपोर्ट्स के अनुसार, इसका उपयोग करने के लिए यूजर्स से 4 हजार रुपए तक की फीस वसूल की जा सकती है। इसका कारण यह है कि यह तकनीक अधिक उन्नत और महंगी है, और इसके लाभ भी काफी अधिक होंगे।

पैसे कैसे कटेंगे? इस पर कोई आधिकारिक जानकारी अभी तक नहीं आई है, लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार, एक वॉलेट सिस्टम होगा जिसमें यूजर्स पैसे जोड़ सकेंगे। इसके अलावा, बैंक अकाउंट से कनेक्ट करने का विकल्प भी उपलब्ध होगा, जिससे पैसे सीधे बैंक अकाउंट से कट जाएंगे। मंत्रालय ने नेशनल हाईवे फीस नियम, 2008 में संशोधन किया है, जिसमें GNSS को शामिल किया गया है।

इस सिस्टम का उपयोग पहले जर्मनी, स्लोवाकिया, बेल्जियम, रूस और पोलैंड जैसे देशों में किया जा चुका है। इन देशों में नियमों का पालन न करने पर जुर्माना लगाया जाता है। भारत में भी इसे लागू करने पर काम चल रहा है, और रिपोर्ट्स के अनुसार, टोल बिना चुकाए यात्रा करने पर भारी जुर्माना भी लगाया जा सकता है। हालांकि, इस प्रणाली से टोल प्लाजा पर लगने वाली लंबी कतारें कम हो जाएंगी, जिससे यह बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है।

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