मेह - Poetry by Shonel Sharma

मेह - Poetry by Shonel Sharma

Meh - By Shonel Sharma

Read here the brand new Poetry "मेह" by Poet Shonel Sharma

  • Poetry
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  • 07, Jan, 2022
Shonel Sharma
Shonel Sharma
  • @TheShonel

कवि शोनेल शर्मा की नई कविता

"मेह"

 

मचलती मेह की बूंदों ने जब,

छटपटा धरा को गले लगाया।

गूंज उठा आसमां भी तब,

जब मेघ से मेघ टकराया।। 

 

धुंधला कृष्ण आसमां होता,

भीगा हुआ समा मुस्काया।

ठंडी पवनों का वेग देख,

तन मन सब रोमांचित होया।। 

 

नीर समेटे जिस्म माटी का,

छिड़के इत्र मदहोशी वाला।

झूम रहे सब वृक्ष उपवन,

पर डाल घरों में डर का साया।। 

 

हुए पर सभी फड़फड़ाने बन्द,

दुबक बैठे किए घोंसले बन्द।

नन्हें पंछी डाली को झांके,

रिमझिम थमने की राह ताके।। 

 

जब स्वर्ण-रश्मि मेघ चीर के,

छूने सतह को आती है।

गर्वित प्रकृति पहन ताज तब,

सतरंग धनु उठाती है।। 

 

छम-छम, थम थम,

घटा छट रही।

घटती नमी मौसम से।

उष्मित हुए जीव वृक्ष सब

मधुर परिवर्तन नभ में।। 

 

कण कण जीवंत हो उठता,

जब रुख मौसम का बदले।

पंख फैला उर्जित हो फिर से,

एक नयी उड़ान हैं भरते।। 

Shonel Sharma

Shonel Sharma

  • @TheShonel