Sab Meri Khata - By Shonel Sharma
Read here the brand new Poetry "सब मेरी खता" by Poet Shonel Sharma
मांगू मैं क्या?
सब कुछ तो दिया,
मैं पहचान न पाई,
सब मेरी है खता।
समझूं मैं क्या?
सब कुछ तो समझाया,
मैं समझ न पाई,
सब मेरी है खता।
सोचूं मैं क्या?
सब कुछ था जताया,
मैं सोच न पाई,
सब मेरी है खता।
देखूं मैं क्या?
सब कुछ था दिखाया,
मैं देख न पाई,
सब मेरी है खता।
चलूं मैं क्या?
राह थी दिखलाई,
मैं चल न पाई,
सब मेरी है खता।
पहुंचू मैं कहां?
मंजिल थी दिखाई,
मैं पहुंच न पाई,
सब मेरी है खता।
शिकवा भी करूं क्या?
ज़िन्दगी दिलवाई,
मैं जी न पाई,
सब मेरी है खता।
सब मेरी ही है खता।।