Hoor - By Shonel Sharma
Read here the new Poetry "हूर" by Poet Shonel Sharma
मद्धम सी धूप की रोशनी,
उसके चेहरे का नूर बन गई।
शीशे सा चमकता बदन लिए,
वो हसीन हूर बन गई।
होंठ फूलों का रस पिए,
इत्र सी उसकी महक,
भवरों को मदहोश किए।
उसका जिस्म छू
चलने वाली वो हवा,
एक सुरूर बन गई।
शांत नीली आंखों में जैसे,
समन्दर की गहराई समायी हो।
काले घने मेघ जैसे,
अपने केश में उलझायी हो।
एक साज सा उसका प्रतिबिंब
वो प्रकृति में,
या प्रकृति उसमें समायी हो।।
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