Insaniyat - By Shonel Sharma
Read here the new Poetry "इंसानियत" by Poet Shonel Sharma
हां, तुम जैसे तो नहीं,
पर सीने में दिल तो एक सा है।
है रहने के तरीके तुमसे अलग,
पर जिंदगी को चाहना एक सा है।
ना मिलती सोच हमारी तुमसे,
पर रगो में खून दौड़ता एक सा है।
भले ही स्वीकारी न जाए, ये देह तुमसे,
पर रूह का होना एक सा है।
तुम जिस्मानी बनावट से नियम बनाते,
हम रूह से आंका करते हैं।
तुम जिस्मों के जाल में उलझे रहते,
हम रूहानी जिंदगी जिया करते हैं।
तुम प्रेम को, सोच के तोला करते,
हम भावनाओं की, कद्र किया करते हैं।
तुम धर्म जात रंग से इंसा परखते,
हम सिर्फ इंसानियत को धर्म मानते हैं।
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