क्या हुआ था हल्दीघाटी युद्ध के दौरान?

क्या हुआ था हल्दीघाटी युद्ध के दौरान?

What happened during the Haldighati war?

मेवाड़ के महाराणा प्रताप विश्वभर में अपने शौर्य के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका हल्दीघाटी का युद्ध आज भी लोगों के बीच प्रचलित है, आज इस लेख में मैं आपको हल्दीघाटी के युद्ध से संबंधित किस्सों से रूबरू करवाऊंगी.

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  • 10, May, 2022
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Riya saxena
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हिंदुआ सूरज मेवाड़ मुकुट नाम से प्रसिद्ध महाराणा प्रताप का नाम बड़े बड़े शूरवीरों में शामिल है, उनके शौर्य के किस्से बच्चे बच्चे की ज़ुबान पर रहते हैं. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 में मेवाड़ रियासत के राजा राणा उदय सिंह और माता जयवंंता बाई के घर हुआ था. उनका बचपन कुंभालगड़ किले में बीता, वहीं उन्होंने युद्ध के पद्धतियाँ सीखीं और एक वीर योद्धा के रूप में उभरकर सामने आए. 

कैसी थी महाराणा प्रताप की शक्सियत? 

बचपन से ही महाराणा प्रताप की शक्सियत काफी तेजस्वी थी. उनका मज़बूत बदन, बड़ी बड़ी आंखें और मुस्कान बिखेरता चेहरा किसी को भी उनकी ओर आकर्षित कर सकता था. 28 फरवरी 1572 को महाराणा प्रताप ने मेवाड़ रियासत की राजगद्दी संभाली, इस दौरान मेवाड़ का हाल बेहद खस्ता था. महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह राणा के राज के दौरान मुगलों के साथ हुए युद्ध में मेवाड़ रियासत को भारी नुकसान उठाना पड़ा था, गद्दी संभालने के बाद महाराणा प्रताप के ऊपर एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी मेवाड़ रियासत के हालात सुधारने की थी जिसे उनने बखूबी निभाया.

महाराणा प्रताप के पदभार संभालने के दौरान मेवाड़ रियासत की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी और मेवाड़ के एक बड़े हिस्से पर मुगलों ने कब्ज़ा कर रखा था और मुगलों द्वारा लगातार मेवाड़ के बचे हुए इलाके को हथियाने की कोशिशें जारी थीं. प्रसिद्ध मुगल शासक अकबर ने इस कार्य के लिए अपने कई सैनिकों को काम पर लगा रखा था.

हालांकि, महाराणा प्रताप एक निडर व्यक्ति थे, उनका मानना था कि "बहुत जल्द हवा का रुख बदलेगा और केसरिया ध्वज शान से लहराएगा." यह कहकर वह अक्सर अपने सैनिकों का आत्मविश्वास बढ़ाते थे. महाराणा प्रताप अपने निश्चय को पूरा करने के लिए इतने गंभीर थे कि इसके लिए उन्होंने राज महल में रहना, सोने या चांदी के बर्तनों में भोजन करना और पलंग पर सोना तक त्याग दिया था. उनने शपथ ली कि जबतक वह मेवाड़ से मुगल शासन का अंत नहीं कर देते वह इन सुख सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं करेंगे. उनके इसी जज़्बे को उनकी प्रजा और सैनिक बहुत पसंद करते थे.

अपने सपने को पूरा करने के लिए महाराणा प्रताप ने भील योद्धाओं को अपनी सेना में शामिल किया, लोहारों को हथियारों के ज़खीरे बनाने का आदेश दिया गया और सैनिकों को प्राचीन युद्ध कलाएँ सिखाई गईं ताकि वह मुगल सैनिकों को युद्ध के दौरान सफलता पूर्वक पराजित कर सकें. मुगल शासक अकबर ने महाराणा प्रताप को रोकने के कई प्रयास किया परंतु आखिर में उन्हें उनके सभी प्रयासों में असफलता प्राप्त हुई. दरअसल महाराणा प्रताप निश्चय कर चुके थे कि वह मेवाड़ से मुगलों का राज खत्म करके रहेंगे.

क्या हुआ था हल्दीघाटी युद्ध के दिन? 

अपने सभी प्रयासों में विफल होने के बाद मुगल शासक अकबर ने राजा मानसिंह को अपनी एक लाख सैनिकों की सेना का सेनापति बना दिया और उन्हें मेवाड़ पर मुगलों का कब्ज़ा जमाने की ज़िम्मेदारी दी गई. इसके बाद 3 अप्रैल 1576 में मान सिंह अपनी विशाल सेना के साथ मेवाड़ के लिए कूच कर गए. 

मुगल सेना में राजपूत और मुगल थे वहीं महाराणा प्रताप की सेना में राजपूत, भील, पठान और लौहार थे. 18 जून 1576 को उस महत्वपूर्ण युद्ध की शुरुआत हुई जिसे आज भी लोग हल्दीघाटी युद्ध के नाम से जानते हैं. बिजली की तेज़ गढ़गढ़ाहट के बीच दोनों तरफ की सेनाएँ आगे बढ़ीं और महाराणा प्रताप ने अपने हरावल दस्ते को शत्रू सेना पर प्रहार करने का आदेश दिया, महज कुछ समय में दस्ते ने मुगल सेना के तीन हरावल दस्तों पर प्रहार करके उन्हें खत्म कर दिया जिसके बाद मुगल सैनिक काफी डर गए. 

तभी वीर पुत्र महाराणा प्रताप ने युद्ध भूमि पर कदम रखा, लंबे, मज़बूत और ताकतवर महाराणा प्रताप को देख मुगल सैनिक अचंभित रह गए. महज कुछ समय में महाराणा प्रताप के सैनिकों ने कई मुगल सैनिकों का खात्मा कर दिया जिसके बाद मुगल सैनिक घबरा गए. हालांकि, महाराणा प्रताप उन्हें चुनौती देने वाले राजा मानसिंह को नहीं मार सके और युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का भी एक पैर कट गया वहीं दूसरी ओर महाराणा प्रताप भी घायल हो चुके थे यह देख साधड़ी रियासत के झाला बिदा ने महाराणा प्रताप को वैद्य के पास जाने का सुझाव दिया जिसके बाद महाराणा प्रताप अपने घोड़े चेतक के साथ पर्वतों की तरफ कूच कर गए और जाते जाते वह झाला बिदा को युद्ध का नेतृत्व सौंप गए. कुछ समय बाद मुगलों और महाराणा प्रताप की सेना की घमासान टक्कर हुई जिसमें महाराणा प्रताप ने विजय हासिल की हालांकि इस युद्ध में महाराणा प्रताप के प्रीय घोड़े चेतक की मृत्यु हो गई. 

Image source: Yoga for modern age and chittaurgarh.com

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