Vo bachapan ke din - By Shonel Sharma
Read here the brand new poetry "वो बचपन के दिन" By Poet Shonel Sharma
ना कोई डर,
ना कोई फिकर,
रहते थे, शान से।
इस दुनिया से दूर,
थे कहीं अनजान से।
हर पल को जीते,
हर पल को हंसते,
खेलते - कूदते,
थे दिन निकलते।
नहीं थी कोई चिंता,
ना जिम्मेदारियों का था बोझ।
सच में वो बचपन के दिन,
थे बड़े नादान से।
वो पल ही थे, जो आज भी,
मुस्कुराने की वजह बन जाते है।
वरना इस मतलबी दुनिया में,
अपने भी साथ छोड़ जाते है।
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