श्री बृहस्पति चालीसा

श्री बृहस्पति चालीसा

Shri Brihaspati Chalisa

यहां पढ़िये पूरी 'श्री बृहस्पति चालीसा' । Read here full 'Shri Brihaspati Chalisa'

  • Chalisa
  • 1643
  • 22, Dec, 2021
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श्री बृहस्पति चालीसा

 

|| दोहा ||

प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान l

श्रीगणेश शारदसहित, बसों ह्रदय में आन ll

 

अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान l

दोषोंसेमैं भरा हुआ हूँ, तुम हो कृपा निधान ll

 

|| चौपाई ||

जय नारायण जय निखिलेशवर l

विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर ll 1 ll

 

यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता l

भारत भू के प्रेम प्रेनता ll 2 ll

 

जब जब हुई धरम की हानि l

सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी ll 3 ll

 

सच्चिदानंद गुरु के प्यारे l

सिद्धाश्रम से आप पधारे ll 4 ll

 

उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा l

ओय करन धरम की रक्षा ll 5 ll

 

अबकी बार आपकी बारी l

त्राहि त्राहि है धरा पुकारी ll 6 ll

 

मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा l

मुल्तानचंद पिता कर नामा ll 7 ll

 

शेषशायी सपने में आये l

माता को दर्शन दिखलाये ll 8 ll

 

रुपादेवि मातु अति धार्मिक l

जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख ll 9 ll

 

जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की l

पूजा करते आराधक की ll 10 ll

 

जन्म वृतन्त सुनाये नवीना l

मंत्र नारायण नाम करि दीना ll 11 ll

 

नाम नारायण भव भय हारी l

सिद्ध योगी मानव तन धारी ll 12 ll

 

ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित l

आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित ll 13 ll

 

एक बार संग सखा भवन में l

करि स्नान लगे चिन्तन में ll 14 ll

 

चिन्तन करत समाधि लागी l

सुध-बुध हीन भये अनुरागी ll 15 ll

 

पूर्ण करि संसार की रीती l

शंकर जैसे बने गृहस्थी ll 16 ll

 

अदभुत संगम प्रभु माया का l

अवलोकन है विधि छाया का ll 17 ll

 

युग-युग से भव बंधन रीती l

जंहा नारायण वाही भगवती ll 18 ll

 

सांसारिक मन हुए अति ग्लानी l

तब हिमगिरी गमन की ठानी ll 19 ll

 

अठारह वर्ष हिमालय घूमे l

सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें ll 20 ll

 

त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन l

करम भूमि आये नारायण ll 21 ll

 

धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी l

जय गुरुदेव साधना पूंजी ll 22 ll

 

सर्व धर्महित शिविर पुरोधा l

कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा ll 23 ll

 

ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा l

भारत का भौतिक उजियारा ll 24 ll

 

एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता l

सीधी साधक विश्व विजेता ll 25 ll

 

प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता l

भुत-भविष्य के आप विधाता ll 26 ll

 

आयुर्वेद ज्योतिष के सागर l

षोडश कला युक्त परमेश्वर ll 27 ll

 

रतन पारखी विघन हरंता l

सन्यासी अनन्यतम संता ll 28 ll

 

अदभुत चमत्कार दिखलाया l

पारद का शिवलिंग बनाया ll 29 ll

 

वेद पुराण शास्त्र सब गाते l

पारेश्वर दुर्लभ कहलाते ll 30 ll

 

पूजा कर नित ध्यान लगावे l

वो नर सिद्धाश्रम में जावे ll 31 ll

 

चारो वेद कंठ में धारे l

पूजनीय जन-जन के प्यारे ll 32 ll

 

चिन्तन करत मंत्र जब गायें l

विश्वामित्र वशिष्ठ बुलायें ll 33 ll

 

मंत्र नमो नारायण सांचा l

ध्यानत भागत भुत-पिशाचा ll 34 ll

 

प्रातः कल करहि निखिलायन l

मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन ll 35 ll

 

निर्मल मन से जो भी ध्यावे l

रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे ll 36 ll

 

पथ करही नित जो चालीसा l

शांति प्रदान करहि योगिसा ll 37 ll

 

अष्टोत्तर शत पाठ करत जो l

सर्व सिद्धिया पावत जन सो ll 38 ll

 

श्री गुरु चरण की धारा l

सिद्धाश्रम साधक परिवारा ll 39 ll

 

जय-जय-जय आनंद के स्वामी l

बारम्बार नमामी नमामी ll 40 ll

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