श्री गिरिराज चालीसा

श्री गिरिराज चालीसा

Shri Giriraj Chalisa

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  • 22, Dec, 2021
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श्री गिरिराज चालीसा

 

।। दोहा ।।

बंदहुं वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्याना ।

महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ।।

सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार ।

बरनौ श्री गिरिराज यश, निज मति के अनुसार ।।

 

।। चौपाई ।।

जय हो जय बंदित गिरिराजा । ब्रज मंडल के श्री महाराजा ।।

 

विष्णु रूप तुम हो अवतारी । सुंदरता पै जग बलिहारी ।।

 

स्वर्ण शिखर अति शोभा पामें । सुर मुनि गण दरशन कूं आमें ।।

 

शांत कंदरा स्वर्ग समाना । जहां तपस्वी धरते ध्याना ।।

 

द्रोणगिरि के तुम युवराजा । भक्तन के साधौ हौ काजा ।।

 

मुनि पुलस्त्य जी के मन भाए । जोर विनय कर तुम कूं लाए ।।

 

मुनिवर संघ जब ब्रज में आए । लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराए ।।

 

विष्णु धाम गौलोक सुहावन । यमुना गोवर्धन वृंदावन ।।

 

देख देव वन में ललचाए । बास करन बहु रूप बनाए ।।

 

कोउ बानर कोउ मृग के रूपा । कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा ।।

 

आनंद लें गोलोक धाम के । परम उपासक रूप नाम के ।।

 

द्वापर अंत भये अवतारी । कृष्णचंद्र आनंद मुरारी ।।

 

महिमा तुम्हारी कृष्ण बखानी । पूजा करिबे की मन ठानी ।।

 

ब्रजवासी सबके लिए बुलाई । गोवर्द्धन पूजा करवाई ।।

 

पूजन कूं व्यंजन बनवाए । ब्रजवासी घर घर ते लाए ।।

 

ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी । सहस भुजा तुमने कर लीनी ।।

 

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में । मांग मांग के भोजन पामें ।।

 

लखि नर नारी मन हरषामें । जै जै जै गिरिवर गुण गामें ।।

 

देवराज मन में रिसियाए । नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए ।।

 

छांया कर ब्रज लियौ बचाई । एकउ बूंद न नीचे आई ।।

 

सात दिवस भई बरसा भारी । थके मेघ भारी जल धारी ।।

 

कृष्णचंद्र ने नख पै धारे । नमो नमो ब्रज के पखवारे ।।

 

करि अभिमान थके सुरसाई । क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई ।।

 

त्राहि माम् मैं शरण तिहारी । क्षमा करो प्रभु चूक हमारी ।।

 

बार बार बिनती अति कीनी । सात कोस परिकम्मा दीनी ।।

 

संग सुरभि ऎरावत लाए । हाथ जोड़कर भेंट गहाए ।।

 

अभय दान पा इंद्र सिहाए । करि प्रणाम निज लोक सिधाए ।।

 

जो यह कथा सुनैं चित्त लावैं । अंत समय सुरपति पद पावैं ।।

 

गोवर्द्धन है नाम तिहारौ । करते भक्तन कौ निस्तारौ ।।

 

जो नर तुम्हरे दर्शन पावें । तिनके दुख दूर ह्वै जावें ।।

 

कुण्डन में जो करें आचमन । धन्य धन्य वह मानव जीवन ।।

 

मानसी गंगा में जो नहावें । सीधे स्वर्ग लोग कूं जावें ।।

 

दूध चढ़ा जो भोग लगावै । आधि व्याधि तेहि पास न आवें ।।

 

जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें । मन वांछित फल निश्चय पावें ।

 

जो नर देत दूध की धारा । भरौं रहे ताकौ भंडारा ।।

 

करें जागरण जो नर कोई । दुख दरिद्र भय ताहि न होई ।।

 

“ओम” शिलामय निज जन त्राता । भक्ति मुक्ति सरबस के दाता ।।

 

पुत्रहीन जो तुम कूं ध्यावें । ताकूं पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें ।।

 

दंडौती परिकम्मा करहीं । ते सहजहि भवसागर तरहीं ।।

 

कलि में तुमसम देव न दूजा ।। सुर नर मुनि सब करते पूजा ।।

 

।। दोहा ।।

जो यह चालीसा पढ़े, शुद्ध चित्त लाय ।

सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करैं सहाय ।।

क्षमा करहुं अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज ।

श्याम बिहारी शरण में, गोवर्द्धन महाराज ।।

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