The story of the killing of Bakasura by Shri Krishna
यहाँ पढ़िये श्रीकृष्ण के द्वारा बकासुर के वध की पौराणिक कहानी। Read here the mythological story of the killing of Bakasura by Shri Krishna.
मथुरा के राजा कंस के अत्याचारों से मथुरावासी बहुत परेशान थे। कंस बहुत शक्तिशाली था, उसके पास कई खतरनाक राक्षस थे। इन राक्षसों में एक सबसे खतरनाक राक्षस था बकासुर। बगुले का रूप धारण करने के ही कारण उसे 'बकासुर' कहा गया। बकासुर एक मायवी राक्षस था जिसे पराजित करना नामुमकिन था।
भविष्यवाणी के अनुसार, कंस को प्रतीत होने लगा था कि नंद का पुत्र ही देवकी के गर्भ से जन्मा आठवां बालक है, जो उसका वध करेगा। इस कारण वह कृष्ण को मारने के लिए कोई न कोई षड्यंत्र रचता रहता था।
कंस ने अनेक प्रयास किए, जिससे श्रीकृष्ण का वध किया जा सके, किन्तु वह अपने प्रयत्नों में सफल नहीं हो पा रहा था। इन्हीं प्रयत्नों के अंतर्गत कंस ने बकासुर को वृन्दावन भेजा। श्रीकृष्ण को मारने के लिए बकासुर ने एक बगुले का रूप धारण किया और जहां श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ गायों को चरा रहे थे, वहीं पर पहुंच गया।
दोपहर के पश्चात् का समय था। श्रीकृष्ण दोपहर का भोजन करने के पश्चात् एक वृक्ष की छाया में आराम कर रहे थे। सामने गऊएँ चर रही थीं। कुछ ग्वालबाल अपने बछड़ों को पानी पिलाने यमुना के तट पर ले गये। उन्होंने पहले बछड़ों को जल पिलाया और फिर स्वयं भी पिया। तभी ग्वालबालों ने देखा कि वहाँ एक बहुत बड़ा भयानक जीव बैठा हुआ है। वह ऐसा मालूम पड़ता था, मानों इन्द्र के वज्र से कटकर कोई पहाड़ का टुकड़ा गिरा हुआ है। ग्वालबाल उसे देखकर डर गये। वह बगुले के आकार का जीव, जिसका मुख और चोंच बहुत बड़ी और तीखी थी। ग्वाल-बालों ने ऐसा बगुला पहले कभी नहीं देखा था। ग्वाल-बालों की चीत्कार सुनकर बाल कृष्ण उठ खड़े हुए और उसी ओर दौड़े, जिस ओर से चीत्कार आ रही थी।
वह ‘बक’ नाम का असुर, जो बड़ा बलवान था, बगुले का रूप धर वहाँ आया था। वह विकराल आंखों को लिए गुड़मुड़ाकर पानी में बैठा था। बाल श्रीकृष्ण समझ गये कि यह कोई राक्षस है। उन्होंने बगुले के पास जाकर, उसकी गरदन पकड़ इतनी ज़ोर से मरोड़ी कि उसकी आंखें निकल आई। भगवान की पकड़ से उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी वह धरती पर गिर गया। लेकिन मौका पाकर उसने झपटकर कृष्ण को निगल लिया।
जब बलराम आदि बालकों ने देखा कि वह बड़ा भारी बगुला श्रीकृष्ण को निगल गया है, तब उनकी वही गति हुई जो प्राण निकल जाने पर इन्द्रियों की होती हैं। वे अचेत हो गये। कुछ परेशान होकर घरों की तरफ चिल्लाते हुए भागने लगे।
श्रीकृष्ण लोक पितामह ब्रह्मा के भी पिता हैं। वे लीला से ही गोपाल-बालक बने हुए हैं। जब वे बगुले के तालु के नीचे पहुँचे, तो इतनी गर्मी पैदा कर दी कि उसका तालु आग के समान जलने लगा। एक बार फिर बगुला परेशान हो गया, अतः उस दैत्य ने अपना मुख खोलकर श्रीकृष्ण के शरीर पर बिना किसी प्रकार का घाव किये ही झटपट उन्हें उगल दिया। श्री कृष्ण के बाहर आने के बाद फिर वह दैत्य बड़े क्रोध से अपनी कठोर चोंच से उन पर चोट करने के लिए टूट पड़ा।
बकासुर अभी श्रीकृष्ण पर झपट ही रहा था कि उन्होंने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों ठोर पकड़ लिये और ग्वालबालों के देखते-देखते ही, खेल-ही-खेले में उसे चीर डाला। बकासुर अपने असली राक्षस रूप में प्रकट होकर धरती पर गिर पड़ा और मर गया। राक्षस को देख सभी लोग भयभीत हो गए।
तो इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने बकासुर का वध किया। राक्षस के मरते ही सभी लोग प्रसन्न हो गए और भगवान श्रीकृष्ण को गोद में उठा लिया। उधर बकासुर की मृत्यु की ख़बर सुनकर कंस चिंतित हो उठा।
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