The Kashmir Files, the sad ordeal of Kashmiri Pandits
यहाँ पढ़ें 'कश्मीर फाइल्स' का रिव्यू.
अगर आपको आपके घर और शहर से निकाल दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा? क्या आप उस घर और शहर को छोड़ पाएंगे जहां आप पले-बढ़े हैं? फिल्म कश्मीर फाइल्स उन्हीं लोगों पर आधारित है जिन्हें जबरन उनके घरों से निकाल दिया गया था, टेंट में रहने के लिए मजबूर किया गया था और उनके बच्चों की हत्या कर दी गई थी। यह कहानी उन हजारों कश्मीरी पंडितों की है जो आज भी अपने ही शहर में रहने के अधिकार से वंचित हैं। यह फिल्म सिर्फ हिन्दूओं को नहीं बल्कि हर उस इंसान को देखनी चाहिए जिसमें आज भी इंसानियत बची है।
बात करें फिल्म में मौजूद कलाकारों के अभिनय की तो सभी कलाकारों ने उम्दा अभिनय किया है, कलाकार अपने किरदार में इस कदर डूब जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कि हम फिल्म देख रहे हैं या सच में वह घटना हमारी आंखों के सामने घट रही है. फिल्म के सिनेमैटोग्राफर और डायरेक्टर ने फिल्म के सीन्स को फिल्माते समय पूरा न्याय किया है. हर एक सीन को बड़ी ही क्रिएटिविटी के साथ फिल्माया गया है. बिना किसी प्रसिद्ध अभिनेता और चकाचौंध से भरे गानों के बावजूद यह फिल्म दर्शकों के दिल में जगह बनाने में कामयाब रही.
'द कश्मीर फाइल्स' की कहानी कृष्णा पंडित नामक एक युवक के इर्दगिर्द घूमती है जो कि कश्मीरी पंडितों के सच से अंजान होता है और एक लेफ्ट लिबरल एक्टिविस्ट होता है हालांकि, अपने दादा पुष्कर नाथ जो कि खुद एक कश्मीरी पंडित थे के निधन के बाद जब वह उनकी अस्थियाँ विसर्जित करने कश्मीर जाता है तो अपनी और अन्य कश्मीरी पंडितों की आपबीती जानकर अंदर से टूट सा जाता है.
19 जनवरी के उस मनहूस दिन अचानक कश्मीर की मस्जिदों से फरमान जारी होने लगे कि कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़कर चले जाएं और ऐसा नहीं करने पर उन्हें इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी. इसके बाद कई कश्मीरी भय से कश्मीर छोड़कर जाने लगे हालांकि, जो फरमान नहीं मानते थे उन्हें इसका हरजाना अपनी जान गवाकर चुकाना पड़ता था.
पाकिस्तानी और कश्मीरी मिलिटेंट्स चुन चुन कर प्रतिष्ठित कश्मीरी पंडितों को भी अपनी गोलीयों का निशाना बना रहे थे. आतंकीयों ने सबसे पहले बीजेपी के उस समय के नामी लीडर टीका लाल टपलू, रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू और पत्रकार-वकील प्रेम नाथ भट्ट को अपनी क्रूरता का शिकार बनाया, सभी को बड़ी ही क्रूरता के साथ मार डाला गया.
इस नरसंहार में आतंकीयों द्वारा कई मासूम लड़कीयों का रेप किया गया, बच्चों को अनाथ किया गया और बुजुर्गों को तक मौत के घाट उतारा गया. इन सबके बावजूद उस समय की वीपी सिंह की सरकार कश्मीरी पंडितों को बचाने में असफल रही नतीजतन, हजारों कश्मीरी पंडितों को अपना शहर और घर छोड़कर कैंपों में अपने ही देश में शर्णार्थियों की तरह रहना पड़ा. उनमें से कुछ तो जैसे तैसे अपने आपको संभालने और आर्थिक तौर पर सक्षम होने में कामयाब रहे हालांकि, आज भी कई ऐसे कश्मीरी पंडित देश में मौजूद हैं जो कैंपों और एक कमरे के मकानों में अपनी ज़िंदगी गुज़र बसर कर रहे हैं.
जहाँ कई लोग फिल्म की सराहना कर रहे हैं और कश्मीरी पंडितों के लिए अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे हैं वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो फिल्म को झूठ और प्रोपेगेंडा फैलाने का एक माध्यम बता रहे हैं. कुछ लोगों के अनुसार 'द कश्मीर फाइल्स' हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए बनाई गई है. हालांकि, फिल्म में कहीं भी किसी धर्म विशेष को गलत नहीं बताया गया बल्कि उन लोगों की असलियत बताई गई है जो धर्म के नाम पर आम जनता को भड़काते हैं और उनके मन में अपने ही करीबी दोस्तों और पड़ोसीयों के खिलाफ ज़हर घोलते हैं जिनके साथ कभी वह खेले और समय बिताया करते थे.
फिल्म का विरोध करने वाले लोग वही हैं जो अन्य धर्मों पर हुए अत्याचारों पर बनीं फिल्मों पर उनकी प्रशंसा करते हैं और अत्याचार से पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हैं. इनलोगों के ऐसे व्यवहार से इनका दोगलापन साफ साबित होता है. बहरहाल 'द कश्मीर फाइल्स' बॉक्स ऑफिस पर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही है और इसको देखने के लिए लोगों की उत्सुकता देखते ही बनती है. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार फिल्म ने अब तक ₹116.45 करोड़ की कुल कमाई को पार कर लिया है.
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