Jab Andar Se Mein Bharti Hoon - By Shonel Sharma
Read here the brand new Poetry "जब अंदर से मैं भरती हूँ!" by poet Shonel Sharma
जब अंदर से मैं भरती हूँ,
ले कलम, लिख पड़ती हूँ।
कर मन को अपने हल्का मैं,
स्याही पन्नों से लड़ पड़ती हूँ।
जब अंदर से मैं भरती हूँ।।
जब जोर ना चलता, बाहर मेरा,
तब खुद से ही झगड़ती हूँ।
खुशियों का गला घोट कर,
मैं थोड़ा रो लेती हूँ।
जब अंदर से मैं भरती हूँ।।
गैरों का क्या दुःख मनाना,
अपनों से ही धोखा खाती हूँ।
जिन पर ज्यादा विश्वास थी करती,
उनके हाथों ही रोज़ मरती हूँ।
जब अंदर से मैं भरती हूँ।।
ले हंसी होंठो पर अपने,
हर रोज़ बाहर निकलती हूँ।
अनदेखा कर दुनियां को सारी,
बस अपनी राह पर चलती हूँ।
जब अंदर से मैं भरती हूँ।।
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