जब अंदर से मैं भरती हूँ!  - Poetry by Shonel Sharma

जब अंदर से मैं भरती हूँ! - Poetry by Shonel Sharma

Jab Andar Se Mein Bharti Hoon - By Shonel Sharma

Read here the brand new Poetry "जब अंदर से मैं भरती हूँ!" by poet Shonel Sharma

  • Poetry
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  • 07, Jan, 2022
Shonel Sharma
Shonel Sharma
  • @TheShonel

कवि शोनेल शर्मा की नई कविता

"जब अंदर से मैं भरती हूँ!"

 

जब अंदर से मैं भरती हूँ,

ले कलम, लिख पड़ती हूँ।

कर मन को अपने हल्का मैं,

स्याही पन्नों से लड़ पड़ती हूँ।

जब अंदर से मैं भरती हूँ।।

 

जब जोर ना चलता, बाहर मेरा,

तब खुद से ही झगड़ती हूँ।

खुशियों का गला घोट कर,

मैं थोड़ा रो लेती हूँ।

जब अंदर से मैं भरती हूँ।।

 

गैरों का क्या दुःख मनाना,

अपनों से ही धोखा खाती हूँ। 

जिन पर ज्यादा विश्वास थी करती,

उनके हाथों ही रोज़ मरती हूँ। 

जब अंदर से मैं भरती हूँ।। 

 

ले हंसी होंठो पर अपने,

हर रोज़ बाहर निकलती हूँ। 

अनदेखा कर दुनियां को सारी,

बस अपनी राह पर चलती हूँ। 

जब अंदर से मैं भरती हूँ।। 

Shonel Sharma

Shonel Sharma

  • @TheShonel