Jhunjhlaahat - By Shonel Sharma
Read here the brand new Poetry "झुंझलाहट" by Poet Shonel Sharma
झुंझलाहट सी उठी मन में,
कई सवाल करती है।
क्यों इस मतलबी दुनिया की,
इतनी परवाह करती है।।
क्या दिया इसने तुझे,
फिर क्यों तू सोचती है।
हस के ये जालिम सी,
हर पल नोचती है।।
जैसी दिखती वैसी नहीं,
धोखे का वार देती है।
न कदर तेरे मान की,
तो क्यों पिघलती है।।
ना तेरा कोई होगा,
सिर्फ साथ तेरे तू।
क्यों न ये समझ,
आगे तू बढ़ती है।।
क्यों उठे सवालों से,
परेशान होती है?
अहमियत ही क्या रखते हैं वो,
जो उन्हें जवाब और वक्त देती है।।
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