ऐ इंसा! - Poetry By Shonel Sharma

ऐ इंसा! - Poetry By Shonel Sharma

Ae Insaa! - By Shonel Sharma

Read here the new Poetry " ऐ इंसा!" by Poet Shonel Sharma

  • Poetry
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  • 07, Jan, 2022
Shonel Sharma
Shonel Sharma
  • @TheShonel

कवि शोनेल शर्मा की नई कविता

"ऐ इंसा!"

 

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।

मतलब की दुनिया बना बैठा है।

जो सौंपा था हाथ में तेरे,

तू उसको भी खो बैठा है।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

 

तुझको दी ये प्रकृति मैंने,

तेरे जीवन यापन को,

लालच भर के तुझमें आया,

तू उसको ही खा बैठा है।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

 

जो जल तेरी प्यास बुझाता,

तू उसको ही दूषित कर रहा है।

जो वृक्ष तेरी सांस बनता,

तू उसकी ही जड़ काट रहा है।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

 

खुद ऐश और आराम में रहकर,

बेजुबां को कैसे तड़पा रहा है।

खुद के ज़ालिम पेट की खातिर,

तू अपनो को ही खा रहा है।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

 

धोखा तेरे खून में बसता,

और नस नस में लालच।

फितरत में तेरे स्वार्थ दिखता,

और दिल में कड़वाहट।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

 

है घमंड कितना तुझमें,

जैसे तू है अमर प्राणी।

हो जाएगा सब कुछ नाश एक दिन,

तेरी ना अलग कहानी।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

 

हो भले तेरे शौक कितने,

कर मौज, इसमें ना कोई हानि।

पर खुद के मौज के पीछे,

ना कर औरों की बर्बादी।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

 

सब रह जाना तेरा यहीं पर,

ना साथ तेरे कुछ भी जाना।

जो चलेगा संग, तेरा करम वो होगा,

फिर तूने बड़ा पछताना।

क्योंकि,

तेरे कर्मों के हिसाब से ही,

तेरा भाग्य लिखा जाना।

ऐ इंसा! तू कितना मतलबी।।

Shonel Sharma

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