Vichitra Chitrakaar - By Shonel Sharma
Read here the new Poetry " विचित्र चित्रकार" by Poet Shonel Sharma
वो विचित्र चित्रकार है,
जो नयनों की कमान से,
ख्वाब है उकेरती,
विचित्र चित्रकार है।।
इंद्रधनुषी रंगो को,
है चित्र में बिखेरती।
उड़ेल मन की आशाएं,
चित्र को संवारती।
विचित्र चित्रकार है।।
धरा, गगन क्या चित्र में,
ब्रह्माण्ड को पुकारती,
अखंड ज्वाला सी बन,
कभी भुजंग सी फुंकारती।
विचित्र चित्रकार है।।
लाल रंग सूर्य से,
हरा मिला वृक्ष से,
नील अम्बर दिये,
उज्वला चन्द्र से।
मिलाप सारे वर्णों का,
मिला ऐसा स्वरूप है।
चित्र ये विचित्र है।
विचित्र चित्रकार है।।
हृदय के किनार में
ये कैसा गुंबार है।
सिंह सी दहाड़ तू,
काल की हुंकार है।
विचित्र चित्रकार है।
वो विचित्र चित्रकार है।।
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