Khidki - By Shonel Sharma
Read here the new Poetry " खिड़की" by Poet Shonel Sharma
मेरे कमरे की खिड़की,
खिड़की नहीं, दोस्त हो तुम।
सुख दुख की साक्ष्य,
जीवन का अनमोल हिस्सा हो तुम।
लम्हें थे खास, जब हम बैठे साथ,
घंटो तुमसे बातें किया करती थी।
तेरे आंचल से झांक,
अनंत आकाश को तांक,
मैं तुमसे अपने सपने साझा करती थी।
तुम बस मुझे गहराई से सुनती,
और एक यकीं दिलाती,
मुझमें छुपी ऊर्जा का एहसास कराती।
हर मौसम हमने साथ बिताए,
तुझ से होकर मुझ तक आती,
बारिश, धूप, हवाएं।
अपने चौकोर दायरे से मुझे,
प्रकृति के सौ रंग दिखाए।
तेरे ही आंचल तले लिखी मैंने,
पहली बार अपनी भावनाएं।।
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