Sulagti Lakdi - By Shonel Sharma
Read Here The New Hindi Poetry "सुलगती लकड़ी" By Poetess Shonel Sharma
वो सर्दी में
सुलगती लकड़ी जैसे,
खुद को जलाकर
खाक हो गयी,
दे गयी राहत
उन बेबस लोगों को,
जो सर्द रातों में
सेक गये हाथ
महसूस कर के
उसकी तपन को।
सुबह उड़ेल दी गयी
खेत खलिहानों में।
खुद का वजूद खोकर
मिल गयी मिट्टी में।
पैरों तले रौंदी गयी,
दर्द कितना,
बयां न कर पाई,
फिर भी जान नई
फूंक गयी फसलों को।
©ShonelSharma✍️
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