यहां पढ़िए पौराणिक कथा युद्धिष्ठिर का शीशा । Read here the mythological story Mirror Of Yudhishthira.
एक दिन युधिष्ठिर को एक जादुई शीशा तोहफे में मिला। जब कोई व्यक्ति उसके सामने खड़ा होता था तो उसे उस शक्स का चेहरा दिखता था जिसके बारे में वह सबसे ज्यादा सोचता है। पांडव और उनके साथी मज़े कर रहे थे। कुछ ने अपने प्रेमियों को, कुछ ने अपनी पत्नियों को और कुछ ने सोने चाँदी के दर्शन किये।
एक दिन कृष्ण उनसे मिलने आये। पांडव देखना चाहते थे कि कृष्ण किसके बारे में सोच रहे हैं। अर्जुन ने कहा, कृष्ण मेरे बारे में सोच रहे होंगे जिस बात से सब सहमत हुए।
उन्होनें देखा की शीशे में शकुनी मामा पासा फ़ेंक रहे हैं। अर्जुन बोले, “कृष्ण मैं समझ जाता अगर आप राधा, रुक्मिणी या सत्यभामा के बारे में सोच रहे होते। हम सब आपके दोस्त, भाई और भक्त हैं, लेकिन हममें से कोई दिखाई नहीं दिया और न ही भीष्म और द्रोण। क्या आप के पास इसका जवाब है?”
कृष्ण ने जवाब दिया,
“अर्जुन ये बहुत आसान है। शकुनी हमेशा कुछ न कुछ नयी चाल चल रहा होता है और उसे ये चिंता रहती है कि मैं उसकी चालों को नाकाम कर दूंगा। वह सबसे ज्यादा मेरे बारे में सोचता है तुम सब से ज्यादा। इसीलिए मैं भी उसके बारे में निरंतर सोचता हूँ और अपनी नीतियाँ उसी हिसाब से तय करता हूँ।”
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